"मैं राष्ट्रभक्त हूं और आजीवन राष्ट्र की सेवा करता रहूंगा !" ---किरण कुमार पाण्डेय
Book Summary
सम्बंधों पर जितनी बात की जाए, उतनी ही कम पड़ेगी ! संबंध कहीं प्रगाढ़ तो कहीं अगाढ़, कहीं मिठास तो कहीं खटास, कहीं अपनापन तो कहीं परायापन, कहीं अनुराग तो कहीं विराग और भी न जाने क्या -२ बनता बिगड़ता रहता है ! मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि, "जीवन है तो संबंध हैं, बनेंगे, बिगड़ेंगे परन्तु ध्यान रहे संबन्ध बनाने से ज्यादा निभाना ज़रुरी होता है !" इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि, 'हमारा सारा जीवन संबंधों को सहेजने में बीत जाता है फिर भी सम्बन्धों के बनने और बिगड़ने का क्रम बदस्तूर जारी रहता है !'