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प्रॉमिस

 “पापा, आसमान में कितने तारे होंगे? वे रात में ही क्यों दिखाई देते हैं?”

“बेटा, आसमान में बहुत सारे तारे हैं, बहुत सारे.. दिन के समय सूरज की रोशनी होती है इसलिए हमें तारे दिखाई नहीं देते। ”

“पापा, कल आपने जो परी की कहानी सुनाई थी, वह परी सच में होती है क्या?” 

“नहीं बेटा, वह तो केवल कहानियों में होती है।”

“ये तितलियाँ इतनी रंग-बिरंगी क्यों होती हैं? इनके पंखों में रंग क्या परियाँ भरती हैं?”

“नहीं बेटा, भगवान जी भरते हैं।”

“परी का जादू थोड़ी देर के लिए मुझे मिलेगा क्या?”

“नहीं बेटा।”

“पापा, जब मैं चली जाऊंगी, आपको यहाँ अच्छा लगेगा क्या?”

“..... नहीं…..बे….”

“मुझे बहुत दर्द होगा क्या पापा?”

“नहीं बेटा, एक दिन तुम नींद से जागोगी और भगवान जी के पास होगी।”

“पापा, क्या भगवान जी खुद आएँगे मुझे लेने?”

“हाँ बेटा, तुम्हें प्यारे-प्यारे खिलौने और चॉकलेट भी देंगे।”

“पर वहाँ आप तो नहीं होंगे ना पापा? 

“नहीं बेटा, पर जल्दी ही आकर मिलूँगा तुमसे।”

“जब मैं चली जाऊंगी… मेरे कपड़े.. और मेरे खिलौने..
क्या आप खेलोगे उनसे? या बस अलमारी में रख दोगे? या मैं अपने साथ ले जाऊँ?”

“.... नहीं बेटा, वहाँ तो और भी अच्छे-अच्छे खिलोने होंगे।”

“माँ भी होंगी ना वहाँ?”

“हाँ बेटा, वह भी होंगी वहाँ।”

“अरे वाह! तब तो बड़ा मजा आएगा! हम खूब खेलेंगे, आपको भी याद करेंगे पापा। हम आपका इंतजार करेंगे।”

“हाँ बेटा, अब सो जाओ। देखो आपकी साँस फूल रही है।” 

“वहाँ जाकर तो मैं बीमार नहीं पडूँगी ना? वहाँ तो मुझे खेलने को मिलेगा ना?”

“हाँ बेटा, वहाँ तुम बिल्कुल ठीक रहोगी। अपनी माँ के साथ खूब खेलना।”

“अच्छा पापा, एक बात पूछूँ? मैं अपनी छोटी गुड़िया को तो लेकर जा सकती हूँ ना? भगवान जी को अच्छा लगेगा ना?”

“हाँ ज़रूर, भगवान जी को बहुत अच्छा लगेगा, अभी अपने पास ही रखो।”

“पापा, क्या वहाँ मेरे साथ खेलने के लिए छोटे बच्चे होंगे?”

“हाँ बेटा, होंगे।”

“क्या वहाँ स्कूल भी होगी? पढ़ाई करनी पड़ेगी?”

“पढ़ाई तो करना ही चाहिए बेटा, ऐसा करोगी तभी तो बड़ी होकर होशियार बनोगी।”

“लेकिन अगर मैं बड़ी होने ही नहीं वाली तो भी क्या वहाँ…..”

“सो जाओ मेरी गुड़िया, हम कल‌ बात करेंगे।”

“ओके पापा, गुडनाईट, अगर मैं सुबह नहीं उठी तो भगवान जी के घर पर होऊँगी ना?”

“तुम जहाँ भी होंगी, बहुत मज़े में होगी। चलो अब सो जाओ।”

"ओके पापा, गुडनाईट एँड स्वीट ड्रीम्स, मैं आज सपने में माँ से मिलूँगी और उनसे ढ़ेर सारी बातें करूँगी और हाँ भगवान जी से गुड़िया के बारे में भी पूछ लूंगी।”

“हाँ बाबा! जो चाहे करो, अभी सो जाओ।”

“ओके, सॉरी पापा, आप कितने अच्छे हो! यू आर दी बेस्ट पापा इन दि वर्ल्ड। लव यू पापा।”

“लव यू बेटा, गुडनाईट”


***


“हाय! कैसे हो?” 

“मैं बिल्कुल बढ़िया, तुम कैसी हो?”

“ठीक हूँ, थोड़ा दर्द है।”

“सो जाओ, तुम्हें ठीक लगेगा।”

“हाँ अब बस कुछ ही दिनों की बात है, फिर तो सब ठीक हो जाएगा।”

“ऐसा मत कहो।”

“हे! त्रिशा का ख़याल रखोगे ना?”

“ये भी कोई कहने की बात है!”

“छोटी है ना, क्या करूँ? मेरी किस्मत ही खराब है। मुझे बहुत याद आएगी उसकी!”

"ह्म्म्म...."

“उसे पढ़ा लिखा कर बहुत काबिल बनाना, मैं सब देखूंगी ऊपर से।”

"...."

“अगर…..”

“अब सो जाओ, सब कुछ हमारे हाथ में नहीं होता है।”

“हाँ लेकिन एक छोटी बच्ची और एक छोटे बच्चे जैसा पति, फ़िक्र तो होगी ही ना?”

"...."

“सुनो, रोना नहीं। अपने आँसुओं को पी जाना, अब तुम्हें माँ और पापा दोनों का फ़र्ज़ अदा करना है।”

“रो नहीं रहा हूँ मैं…. आँखों में कचरा पड़ गया है।”

“क्या मैं समझती नहीं हूँ? अस्पताल के ए.सी. रूम में कचरा कहाँ से आयेगा?”

"..."

“अच्छा चलो अब रोना बंद करो। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? मैं एक दिन सोऊंगी और उठूंगी नहीं। बस नींद में ही….”

"..."

“ओके ओके, सॉरी बाबा सॉरी, एक नोटबुक में उसके लिए कुछ लिखा है, जब वह बड़ी हो जाएगी, उसे पढ़कर सुनाना”

“हाँ” 

“बड़ी याने कि दस या बारह साल की ताकी वह समझ सके।”

“ओके, सो जाओ अब।”

“हाँ बाबा हाँ, सो ही रही हूँ मैं। बाद में तो सोना ही है, हमेशा के लिए!

“गुडनाईट”

“गुडनाईट, यू आर दी बेस्ट हसबैंड, लव यू”

“लव यू टू”


****

उसने सुबह पत्नी की लिखी हुई नोटबुक बेड पर रखी, जो उसने त्रिशा के लिए लिखी थी।

“आज त्रिशा नहीं उठी, अब उठेगी भी नहीं। सॉरी लेकिन वह अभी दस साल की भी नहीं हुई है इसलिए तुम्हारी लिखी हुई नोटबुक उसे नहीं दे सका, अब तुम ही उसका ख़याल रखना, जल्दी ही मिलते हैं।”

उसने आखिरी बार बेड पर सोई हुई त्रिशा की ओर देखा और बाहर चला गया।

खिड़की से हवा का एक झोंका आया और नोटबुक के पन्ने फड़फड़ाते हुए पलटने लगे।

“हे त्रिशा! पापा की गुड़िया! अब तो तुम बड़ी हो गई होगी, है ना? अपने पापा का ख़याल रखना बेटा, प्रॉमिस?”



लेखक : उमंग चावडा

भावानुवाद : ऋचा दीपक कर्पे   


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