सुंदर सलोनी कविताएँ
आज,
वह पूछ ही बैठी
कि हो क्या गया है आखिर?
मैं नज़र ही नही आती तुम्हें आजकल!
न फूलों की खुशबू में,
न पत्तों पर पड़ी ओस की बूँदों में,
न नीले आकाश में फैले
बादलों की टुकड़ियों में...!
न चाँद में न चाँदनी में
न मालवा की सर्द रातों में
न किस्सों न बातों में!
रिमझिम बारिश की बूँदें
और सौंधी-सी मिट्टी की खुशबू ?
आसमान के गहरे हल्के नीले रंग
क्या अब मुझे नही बुलाते?
रंगबिरंगी तितलियाँ
किताबों के फडफडाते पन्ने
क्या अब मेरी बातें नही सुनाते?
क्या सचमुच भुला दिया है मुझे?
जी सकोगी मेरे बिना?
मैंने कहा,
बस! अब बस भी करो!
मैं ज़रा मसरूफ क्या हुई
तुम तो रूठ कर बैठ गई!
तुम तो बसी हुई हो मुझमें
जैसे सूरज में रोशनी
सींप में मोती!
और दिल में धडकन
तुम्हारे बिन न मैं हूँ न मेरा जीवन!
इतना कहकर मैंने उसे दुलारा,
सजाया, संवारा और बैठा दिया
नये-से मखमली सफेद बिछौने पर
पहले वह मुस्कुराई
फिर हँस दी खिलखिलाकर...
सचमुच!
ये बहुत प्यारी होती हैं
मनवा ही लेती हैं हर बात
करवा ही लेती हैं पूरी
हर ख्वाहिश हर हसरत!
अपनी इच्छाएँ आकांक्षाएँ
मेरी सुंदर सलोनी कविताएँ!
©ऋचा दीपक कर्पे