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सत्य


मित्रों ! आज 'सत्य' पर कुछ लिख रहा हूं ! मैं पूरा प्रयास करुंगा कि, विषय की महत्ता पर कोई आंच न आने पाएं ! इसके अलावा मैं भरसक प्रयास करुंगा कि, किंचित कुछ छूटने न पाए परन्तु भूलवश यदि ऐसा कुछ हो जाता है तो आपके बहुमूल्य सुझावों का सदैव स्वागत है ! अपनी बात को अच्छी तरह से आप तक पहुंचाने के उद्देश्य से मैं विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूं कि, संस्कृत के श्लोकों का वर्णन करुंगा कारण कि बिना पूर्वजों के आशीष के 'सत्य' पर कुछ लिख पाना मेरे लिए सम्भव नहीं ! मुझे पूर्ण विश्वास है कि जब आप यह लेख पढ़ चुके होंगे तब अपने आप से एक प्रश्न अवश्य करेंगे कि, अमुक जानकारी मुझे पहले क्यूं नहीं हुई ! खैर छोड़िए, आइए हम सब मिलकर 'सत्य' को जानने समझने का प्रयास करते हैं....


सर्वप्रथम तो मैं यही कहना चाहूंगा कि, 'सत्य के बगैर सृष्टि की कल्पना करना प्राण के बगैर जीवन की कल्पना करने जैसा ही है !' इस वाक्य को समझने के उपरांत कहीं कोई संशय की स्थिति शेष नहीं रह जाती फिर भी आइए संस्कृत के इस श्लोक के माध्यम से 'सत्य' को समझने का प्रयास करते हैं ! अथ,


"सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः !

सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् !!" 


अर्थात 'सत्य से ही पृथ्वी टिकी हुई है, सत्य से ही सूर्य प्रकाशित होता है, सत्य से ही हवा बहती है और सत्य में ही सम्पूर्ण सृष्टि टिकी हुई है !' जब आप ध्यानपूर्वक इस श्लोक को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि, 'यहां सत्य के बारे में बताया गया है और स्पष्ट रूप से कहा गया है कि 'सत्य' की वजह से ही पृथ्वी टिकी हुई है !' भूगोल में जब हम पढ़ते हैं कि, पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य के चारो तरफ चक्कर लगाती है तब यह सवाल स्वयं से क्यूं नहीं पूछते कि, वो धुरी क्या है और धरती के पास इतनी उर्जा आती कहां से है इत्यादि ! इसके अलावा एक अहम प्रश्न यह भी है कि, पृथ्वी सूर्य के ही चक्कर क्यूं लगाती है किसी और का क्यूं नहीं ? खैर यह सब तो भूगोल में पढ़ना ही है ! आज 'सत्य' पर बात कर लेते हैं ! श्लोक में आगे लिखा है कि, 'सत्येन तपते रवि:' अर्थात 'सत्य के कारण ही सूर्य का ताप बना रहता है दूसरे शब्दों में सत्य के कारण ही सूर्य के भीतर ऊष्मा का संचार होता रहता है !' 'सत्येन वाति वायुश्च' अर्थात 'सत्य के कारण ही हवा चलती रहती है !' 'सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्' अर्थात 'सत्य में ही सम्पूर्ण सृष्टि टिकी हुई है ! इसका अर्थ तो यह हुआ कि सृष्टि का आधार ही सत्य है ! अब यह समझने समझाने की कोई आवश्यकता नहीं कि, 'सत्य अथवा ईश्वर में कोई अंतर नहीं, कोई भेद नहीं


सत्य को परिभाषित करता यह दूसरा श्लोक 'मुंडकोपनिषद' से लिया गया है ! अथ, 


"सत्यमेव जयते नानृतम सत्येन पंथा विततो देवयानः ! येनाक्रमंत्यृषयो ह्याप्तकामो यत्र तत् सत्यस्य परमम् निधानम् !!"


अर्थात अंततः 'सत्य' की ही जय होती है न कि असत्य की ! यही वह मार्ग है जिससे होकर आप्तकाम (जिनकी कामनाएं पूर्ण हो चुकी हों) मानव जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं ! बताते चलें कि, 'मुंडकोपनिषद' एक प्राचीन संस्कृत वैदिक पाठ है, जो अथर्व वेद के भीतर अंतर्निहित है ! लगभग ढ़ाई सौ ईसा पूर्व महान सम्राट अशोक ने सारनाथ में जो स्तंभ बनावाया था उस पर देवनागरी लिपि में 'सत्यमेव जयते' अंकित करवाया था वह इसी श्लोक का अंश है ! हम सभी जानते हैं कि, 'सत्यमेव जयते' भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है ! यह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के नीचे देवनागरी लिपि में अंकित है ! 'सत्यमेव जयते' को राष्ट्रपटल पर लाने और उसका प्रचार करने में पंडित मदनमोहन मालवीय की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी ! सर्वप्रथम सन् 1918 ई० में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने 'सत्यमेव जयते' का नारा दिया था ! 


इसके अलावा सत्य को परिभाषित करने के लिए अनेकों उदाहरण दिए जा सकते हैं ! हम सभी जानते हैं कि, हमारे मन मस्तिष्क में अनेकों विचार उमड़ घुमड़ रहे होते हैं लेकिन 'सत्य' है कि सामने आ ही जाता है ! सनद रहे, 'सत्य कभी नहीं रुकता, सत्य कभी नहीं थकता, सत्य का मार्ग कोई अवरूद्ध नहीं कर सकता और सत्य से कोई अछूता भी नहीं रह सकता ! भले ही कोई 'सत्य' को नहीं जानता हो अथवा जानना नहीं चाहता लेकिन सत्य उसके जीवन में दस्तक अवश्य देता है लेकिन यह कैसी विडम्बना है कि, कुछ लोग सत्य जानते हुए भी असत्य का दामन थामे रहते हैं यह जानते हुए भी कि, 'सत्य से कोई जीत नहीं सकता, सत्य को कोई हरा नहीं सकता और हमेशा सत्य की ही जीत होती है !'


सम्भव है कुछ लोग समय रहते 'सत्य' की महत्ता स्वीकार कर लें तो कुछ लोग 'सत्य' की महत्ता देखकर 'सत्य' को स्वीकार करें तो कुछ लोग 'सत्य' की महत्ता महसूस कर 'सत्य' को स्वीकार करें ! ऐसे में जरूरी है कि, हम सभी लोग पहले स्वयं 'सत्य' का अनुसरण करें फिर दूसरों से 'सत्य' का अनुसरण करने को कहें ! यह मानकर चलें कि, 'सत्य की महत्ता स्वीकार करने में आपका ही बड़प्पन है क्योंकि अब आप सदैव संतुष्ट रहने वाले व्यक्ति बन गए हैं जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण कदम है !


धन्यवाद !



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