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मनमी़त

यह कहानी सत्य धटना पर आधारित है..!

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                   मनमीत..



गुलाबी चेहरे की रंगत को देख कर अमर रोमांटिक हो गया।

किचन में कुछ खास फरमाइशे पूरी करने के मूड में उलजी हुई रिया को पिछे से दबे पांव आकर बाहों में भरते हुए अमर बोला।

"क्या बात है जनाब ,आज चेहरे की रौनक में काफी इजाफा हो गया है..?"

चेहरे पर इतनी खुशी की वजह जान सकता हूँ?"

रिया ने अमर के पेट पर उंगली चुभोते हुए कहा।

"आपकी वजह से ही चेहरे पर गुलाबों सी रौनक है जी।

उसने शर्म से अपनी निगाहे झुका ली।

उस शर्म को ना समझे इतना बुद्धू तो नहीं था वो।

उसके चेहरे पर खुशी का फव्वारा छूटा।

"सच कह रही हो..?"

वो और भी ज्यादा शर्माती हुई अमर की बाहों में समा गई।

रिया के गालों पर एक गहरा चुंबन दे कर अमर भागा।

"चलो मैं ये बात  माँ को सुनाता हूँ ।"

"अरे अरे..!" रिया के शब्द मुंह में ही रह गए। अमर वहाँ से छू हो गया था

आज रिया बहुत खुश थी

बरसों बाद भगवान ने आज उसकी सूनी गोद भरी थी! डॉक्टर ने बताया कि वह माँ बनने वाली थी

आज दोनो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे शादी के 5 साल बाद आज ही खुशी देखने को मिली

  9 महीने तक अमर ने उसका बहुत ख्याल रखा

सही समय आने पर उसने खूबसूरत से बच्चे को जन्म दिया

उसका नाम रखा 'मनमीत'

उस बच्चे में रिया की जान बसती थी उसकी सारी दुनिया मनमीत के इर्द-गिर्द रह गई

बहुत  स्नेह लाड दुलार से वो उसकी परवरिश करने लगी

पर अचानक एक दिन मनमीत को बहुत तेज बुखार चढ़ा

बहुत इलाज कराने के बाद वह ठीक तो हो गया

लेकिन कुछ था जो रिया और अमर की समझ में नहीं आ रहा था

मनमीत अब निढाल सा रहने लगा था

ना तो ज्यादा हँसता, और ना ही ठीक से खाता।  सारा दिन छत की तरफ देखता और रोता रहता।

उन्हें लगा कि शायद  बुखार के कारण वो चिड़चिड़ा हो गया है

लेकिन जैसे ही मनमीत  थोड़ा बड़ा हुआ, दोनो की समझ में उसकी बीमारी आने लगी

मनमीत शरीर के रूप से तो बड़ा हो रहा था, लेकिन उसका दिमाग विकास नहीं कर रहा था

शायद बहुत तेज बुखार के कारण उसके दिमाग पर असर हो गया

  रिया और अमर अचानक आहत हो गए थे

आखिर ये क्या हो गया ? उनके घर की खुशियों को  ग्रहण कैसे लग गया..? हमारा लाडला  ऐसा कैसे हो गया ?

कइ सवाल दोनो के मन को कचोट रहे थे।

काफी लंबे अरसे तक बच्चे में कोई सुधार ना देख कर अमर मन से  विचलित हो उठा

अमर के व्यवहार में थोड़ा फर्क आने  लगापर रिया तो माँ थी

वह आज भी अपने बच्चे के साथ उतना ही प्यार करतीउसकी उतनी ही केयर करती  जितनी हमेशा करती थी

मनमीत को हर काम के लिए माँ की सहायता की जरूरत पड़ती थी

वो ना तो बोल सकता था, ना ही चल फिर सकता था।

कानो से भी कम सुनाई देता था उसे।

ना उसे भूख प्यास का पता चलताऔर ना ही वह अपने दैनिक कार्य कर पाता  हर काम के लिए वो रिया पर डिपेंड था। रिया का एक हाथ घर के काम में होता और दूसरा हाथ 'मनमीत' के कामों मेंअमर अचानक से उस पर खींजने लगता बजाय उसकी सहायता करने के

उसे मनमीत पर बहुत गुस्सा आता वह अक्सर रिया को सुनाता

"ऐसा बच्चा होने से तो ना होना अच्छा था..! "

लेकिन रिया की ममता उसे कभी ऐसा ना सोचने देती

वो उसकी हर जरूरत का ख्याल रखती उसे समय पर खाना देती  उसके सारे काम खुद ही करती

वो किसी ना किसी तरीके से मनमीत से पीछा छुड़ाना चाहता था

क्योंकि जैसे जैसे मनमीत बड़ा होता जा रहा था, वैसे वैसे  रिया की मुश्किलें बढ़ रही थी मनमीत की वजह से ही वह अब दूसरा बच्चे के लितैयार नहीं थी

1 दिन अमर खाना खाने बैठा तो अचानक मनमीत चिल्लाने लगा

शायद उसके पेट में दर्द था

  रिया खाना छोड़कर उसकी तरफ भागी यह देखकर अमर चिल्लाने लगा

"ना जाने कब इस करम जले से पीछा छूटेगा जब देखो चिल्लाता रहता हैरोता रहता हैजीना दुश्वार  कर दिया इसने हमारा..!  मैं आज ही इसका कुछ बंदोबस्त करता हूँ.! मेरा दोस्त बता रहा था कि कुछ एनजीओ वाले इसको रखने को तैयार हो जाएंगे..!"

"अमर कैसी बातें करते हो तुम..?

यह हमारा बच्चा है हमारा खून है..! मैं किसी को  हाथ भी नहीं लगाने दूंगी अपने बच्चे को..!  मैं खुद इसकी परवरिश करूंगी..."

" मेरी बात समझो रिया, ये बड़ा हो रहा है हम इसको नहीं संभाल सकते घर पर हमारी भी उम्र अब बढ़ रही है हमें अपने बारे में भी सोचना हैदूसरे बच्चे के बारे में भी सोचना है हम सारी उम्र इसके सहारे तो नहीं रह सकते ना..? और फिर जब भी तुम्हारा मन होगा तुम वहाँ जाकर ससे मिल सकती हो।"

"मैं अपने बच्चे को खुद से दूर नहीं करूंगी..!"

वो रोते हुए अमर के सीने से लग गइ। पर अमर चुपचाप उसका हाथ झटक कर चला गया।

वह सारी रात उस पर बहुत भारी गुजरी। सारी रात वह मनमीत के बारे में सोचती रही।

वो कैसे रहेगा वहाँ.? लेकिन अमर के दिल पर जैसे किसी ने बर्फ की सिल्ली रख दी होरिया के आंसुओं का उस पर कोई असर नहीं हो रहा था

रिया मनमीत को अपने साथ चिपका कर सोती है मनमित भी जैसे कुछ समझ रहा था।

जैसे अंदर से उसे भी पता चल गया था कि वह अपनी माँ से दूर जाने वाला है अगली सुबह रिया भारी मन से सारे काम करती रही.. उसे ऐसा लगता रहा था जैसे कोई उसका कलेजा चीर रहा था। जैसे कोई सिने में हाथ डालकर उसका दिल खींच रहा है

अपने बच्चे से बिछड़ना किसी भी माँ के लिए आसान काम नहीं होता फिर ऐसा बच्चा जो हर समय अपनी माँ के साथ ही चिपका रहे कैसे रहेगा वहाँ? आज मनमीत भी बिल्कुल नहीं रो रहा था

बस चुपचाप छत की तरफ ही देख  रहा था

तभी बाहर एनजीओ वालों की गाड़ी आकर रूकी

गाड़ी में से एक औरत और 2 आदमी बाहर निकले

अमर बाहर जाकर उन्हें बड़े आदर के साथ अंदर ले आया

"आइए आइए मैडम जी...!"

कहता हुआ घर मे आया।

"कहाँ है आपका बच्चा..?"

अमर ने मनमीत की तरफ इशारा करते हुए कहा कि 'ये रहा हमारा मनमीतरिया जाओ इनके लिए चाय लेकर आओ ।'

लेकिन रिया अपने ही ख्यालों में  खोई हुई थी

वो बार-बार मनमीत की तरफ देख रही थी

उसकी मनोदशा समझकर वो एनजीओ वाली औरत कहती है कि आप फिकर मत करोमनमीत वहाँ बिल्कुल सुरक्षित रहेगा इसके जैसे बहुत से और बच्चे भी वहाँ पर रहते हैं बहुत अच्छी परवरिश करते हैं हम ऐसे बच्चों की !"

लेकिन रिया सब कुछ सुन कर भी अनसुना कर रही थी

आज मनमीत भी रो नहीं रहा था उसकी आँखों में एक उदासी सी दिख रही थीअमर के साथ कुछ देर बातें करने के बाद वो मैडम ने साथ आए आदमी को इशारा किया 

"बच्चे को उठा लो.."

जैसे ही वह आदमी मनमीत को उठाने की कोशिश करने लगा

रिया भाग कर उसके पास आ गई

"प्लीज मत लेकर जाओ मेरे बच्चे को..! छोड़ दो इसको..! मै ईसका ख्याल रखती हूँ..! अमर मेरी बात मानो..!  यह बेचारा मूक बधिर  है..! समझाओ इनको प्लीज..! अमर रोक लो इनको..! मैं तुम्हारे पाँव पड़ती हूँ ..! मत भेजो मेरे बच्चे को..!"

रिया का आक्रंद बहुत ही पाषाण ह्रदई इंसान को भी पिघला देने में सक्षम था वह तड़प उठी थी अपने बच्चे को जुदा होते देख कर एक माँ का ह्रदय अब अपने बस में नहीं थावह  बार-बार एक ही बात कर रही थी

"मत ले जाओ मेरे बच्चे को प्लीज..! मेरे पास रहने दो उसे..! मैं संभाल लूँगी उसको..! मैं बहुत अच्छे से ख्याल रखती हूँ उसका ..! वह मेरे जिगर का टुकड़ा है.. मेरा लाल है मेरा .मत छीनो उसे मुझसे आप लोग..!"

जैसे ही वह आदमी मनमीत को उठाने लगा।

वह  ना बोलने वाला गूंगा बच्चा  अचानक रिया का आंचल पकड़कर  झार-झार आंखें लिए  एक ही शब्द बोला

" माँ.!!"

उस बच्चे की तड़प ना तो एक बाप समझ पाया ना तो एनजीओ का स्टाफ

एक  माँ को कराहता छोड़कर उसे वो लोग उठा ले गए।

   (  समाप्त)

 

  





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