नासूर
प्लेटफॉर्म पर ट्रेन के आते ही कुली लगभग दौड़ते हुए ऐसी कोच के पास आ गए। यात्री एक-एक करके उतरने लगे। लगभग सभी यात्रियों के उतरने के बाद एक पचपन वर्षीय औरत जिसके सिर के सभी बालों ने सफेदी को गले लगा लिया था, आंखों पर महंगा लेकिन मोटे लेंसों का चश्मा था, हाथ में सहारे के लिए छड़ी अपने पैरों को जैसे जबरदस्ती आगे चलने के लिए दिल ही दिल निर्देश देते हुए कोच के द्वार पर ले आयी।
"मां जी! कुली चाहिए?" एक युवा से दिखने वाले कुली ने पूछा।
"हां हां...यह..." थकी हुई आवाज में महिला ने कहते हुए एक बड़े सूटकेस की ओर इशारा किया।
कुली ने सहारा देकर महिला को कोच से उतारने के साथ-साथ सूटकेस को उठा लिया और महिला की धीमी चाल के साथ-साथ स्टेशन से बाहर की ओर चलने लगा।
स्टेशन के बाहर टैक्सी स्टैंड पर आने के साथ ही महिला ने एक टैक्सी ड्राइवर को इशारा किया।
"जी कहां चलना है?" टैक्सी ड्राइवर ने शीघ्रता से पास आते हुए धीमी आवाज में पूछा।
"अमर हॉस्पिटल!" सहमी हुई और थकी हुई आवाज में महिला ने कहा।
ड्राइवर ने कुली से सूटकेस लेकर टैक्सी में रखते हुए महिला की ओर देखा। महिला ने कुली की और बीस रुपये बढ़ाते हुए अपने पर्स को बंद किया। कुली अपने रुपए लेकर दूसरी सवारी की तलाश में चला गया।
महिला के टैक्सी में पिछली सीट पर बैठने के साथ ही ड्राइवर ने टैक्सी को स्टार्ट करके सड़क पर दौड़ा दी। लगभग 40 मिनट का सफर तय करने के बाद टैक्सी एक काफी बड़े हॉस्पिटल के सामने ठहर गयी। ड्राइवर ने हॉस्पिटल की मेन गेट के पास खड़े कंपाउंडर की ओर इशारा किया। मेन गेट के पास खड़े 8-10 कंपाउंडर्स में से दो कंपाउंडर व्हीलचेयर लेकर टैक्सी के पास आ गए।
महिला ने टैक्सी ड्राइवर को 300 रुपये दिए और जरा संभलते हुए, हाथों का सहारा लेकर व्हीलचेयर पर बैठकर अपने सूटकेस की ओर देखा।
"मां जी! आप सूटकेस लेकर अंदर नहीं जा पाओगी।" गेट के पास खड़े एक सुरक्षाकर्मी ने कहा।
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".....
लगेज को अंदर ले जाने की अनुमति भी है आप चाहे तो कैमरे से चेक कर सकते हैं।" थकी हुई आवाज में कहा महिला ने।
लंबा वाक्य बोलने के कारण सांस भी फूल गई। सुरक्षाकर्मी ने कुछ सोचते हुए महिला को सूटकेस के साथ ही अंदर हॉस्पिटल में आने की अनुमति दे दी।
ओपीडी हाल से गुजरते हुए महिला ने व्हीलचेयर लेकर चलने वाले कंपाउंडर को धीमी आवाज में कहा- "डॉक्टर एबुलर?" कंपाउंडर ने व्हीलचेयर को एबुलर के केबिन के सामने रोक दिया।
"डॉक्टर साहब...?" केबिन के बाहर खड़े असिस्टेंट से धीमी आवाज में पूछा।
"जी हैं! आपका अपॉइंटमेंट?"
"ऑनलाइन ले लिया था।"
"ठीक है, वेट करो!" कहने के साथ असिस्टेंट केबिन के अंदर चला गया और 5 सेकंड बाद ही वापस आ गया।
"आप सोनिया, फ्रॉम देहली??"
"हां बेटे!"
"आ जाइए!" कहने के साथ ही असिस्टेंट ने व्हीलचेयर को पकड़ा।
"डॉक्टर साहब नमस्कार!"
"ओह मैडम! आइए आइए!"
"डॉक्टर साहब! लास्ट वीक आपने कुछ इंवेस्टिगेन्स कराए थे।" यह सुनते ही डॉक्टर थोड़ा गम्भीर हो गया।
डॉक्टर के चेहरे पर आने जाने वाले गंभीर भावों को देख सोनिया दिल ही दिल चिंतित होने लगी।
"डॉक्टर साहब क्या बात है??" कपकपाती हुई आवाज में पूछा सोनिया ने।
"मैडम...इफेक्ट बात यह है कि आपके साथ कोई और भी...मेरा मतलब...आपके पति...या..." लंबी चुप्पी के बाद डॉक्टर ने गंभीर आवाज में पूछा।
"नहीं! मेरे साथ कोई भी नहीं...लेकिन बात क्या है??" अनजानी आशंका ने महिला के दिल में जगह बनाई।
"इन्फेक्ट मैं आपको बताऊं भी तो कैसे???" आधे अधूरे शब्दों में कहा।
"मैं कुछ समझी नहीं डॉक्टर साहब!"
डॉक्टर ने अपने कम्प्यूटर से निकाल कर एक रिपोर्ट सोनिया की ओर कर दी।
"यह क्या है डॉक्टर??"
"आपकी जो जो इंवेस्टिगेशन्स बनाई गई थीं, ये उनकी कन्क्यूजन रिपोर्ट हैं।"
सोनिया ने अपने कपकपाते हुए हाथों से रिपोर्ट ली और चश्मा ठीक करते हुए रिपोर्ट पढ़नी शुरू कर दी।
रिपोर्ट पढ़ते हुए चेहरे पर भयभीत होने के भाव स्पष्ट उभर आये।
"न...न...नहीं डॉक्टर! यह नहीं हो सकता...मेरे पास करोड़ो रूपये हैं, वह सब ले लीजिए। मैं ठीक होना चाहती हूं, मैं अभी मरना नहीं चाहती......" कहते हुए सोनिया ने अपना सूटकेस खोलकर उसमें से नोटो के बंडल निकाल कर डॉक्टर की टेबल पर रखना शुरू कर दिया।
"डॉक्टर! ये पचास लाख रुपये हैं, इतने ही और दूँगी, मैं जीना चाहती हूं...मैं अभी मरना नहीं चाहती...!" धीमी आवाज में कहते हुए सोनिया चीखने लगी।
ओडीपी हॉल में बैठे हुए सैकड़ो मरीज शोर सुन कर केबिन के सामने आ गए।
"हैव ए पेसेन्स मैडम...!" डॉक्टर की आवाज में सहानुभूति उभर आयी।
"पेसेन्स...कैसा पेसेन्स डॉक्टर?? मैं कहती हूँ मेरा सारा रुपया ले लो, मुझे ठीक कर दो, मैं अभी मरना नहीं चाहती...." फिर से चींख पड़ी सोनिया।
"दिस इस इम्पॉसिबल मैडम! फिर भी हम अपना पूरा प्रयास करेंगे।" डॉक्टर ने सोनिया को सांत्वना देने का प्रयास किया।
"मुझे प्रयास नहीं! गारंटी चाहिए...." पुनः चींख पड़ी सोनिया।
इसी बीच हॉस्पिटल का मैनेजिंग डायरेक्टर अपने ऑफिस में सीसीटीवी पर ओपीडी में डॉक्टर एबलूर के केबिन के सामने जमा मरीजों की भीड़ व महिला की चींखने की आवाज देख व सुन कर थोड़ा सहम गया और शीघ्रता से अपने ऑफिस से निकल कर ओपीडी की ओर बढ़ गया।
"डॉक्टर एबलूर! व्हाट इज दिस???" डायरेक्टर के केबिन में प्रवेश करने के साथ ही मैनेजिंग डायरेक्टर ने पूछा और देखा एक महिला डॉक्टर की टेबल पर सिर रखे रो रही है।
"सर! यह मैडम! लास्ट वीक इनके कुछ ब्लड टेस्ट करवाये थे, जिससे साबित हो गया कि इनकी बीमारी...."
"नहीं है मुझे कोई बीमारी। अगर है भी तो ठीक करो, मैं पैसा पानी की तरह से बहा दूँगी।" डॉक्टर के शब्द सुनते ही सोनिया चींखते हुए खड़ी हो गई।
सोनिया का चेहरा देखते ही डायरेक्टर को लगा जैसे कदमो के नीचे से जमीन सरक रही है।
"स.....स....सोनिया...." बमुश्किल कह पाया डायरेक्टर।
"क... कौन??" सोनिया ने देखा कि सामने एक सवा छः फुट का लगभग सन्तावन वर्षीय आदमी वेल सूटिड बूटिड, आंखों पर महंगा चश्मा।
सोनिया को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। लगा जैसे सपना देख रही हो।
"अ.... अ... अमर.....आप???" दोनों आंखों से जैसे आंसुओ की झड़ी लग गयी। एक बार सोचा कि अमर के सीने से लग जाऊँ लेकिन अगले ही पल दिल ने कहा 'तू ये अधिकार खो चुकी है।' आगे बढ़ते हुए हाथों को बीच में ही रोक लिया।
"हां...सोनिया...मैं.....क्या हुआ????"
"अमर! ये डॉक्टर कहता है कि मेरी जिंदगी का आखरी पहर चल रहा है।"
ये सुनते ही डॉक्टर ने टेबिल पर रखी रिपोर्ट उठाकर अमर की ओर बढ़ा दी।
अमर ने कुछ पलों में ही रिपोर्ट कार्ड पढ़ लिया। पढ़ते पढ़ते अमर के चेहरे पर गम्भीरता के साथ साथ चिंता के भाव उभर आए।
"ओह.. नो...!" धीमी आवाज में बड़बड़ाया अमर।
"क्या हुआ अमर???" अमर की धीमी बड़बड़ाहट को देखते हुए सोनिया ने कपकपायी हुई आवाज में पूछा।
"क्या आप मेरे ऑफिस तक चल सकती हैं??" अमर का गंभीर अंदाज देख कर सोनिया को लगा वो अधिक देर तक खड़ी नहीं रह सकेगी।
पुनः व्हीलचेयर पर पसर गई।
सामने खड़े वार्ड बॉय की ओर इशारा किया अमर ने।
अमर के ऑफिस में बड़ी सी टेबल के इस ओर वार्ड बॉय ने व्हीलचेयर लगा दी।
अमर दुसरीं ओर अपनी बड़ी सी चेयर पर बैठ गया और ध्यान से सोनिया के चेहरे की ओर देखने लगा।
"सोनिया..आपके साथ कोई????"
"नहीं मेरे साथ कोई नहीं है।" सोनिया ने सधे हुए अंदाज में जवाब दिया।
"मेरा मतलब है यहां हॉस्पिटल में आप.. अकेली?? आपके पति या भाई...??"
"क्यों जख्म कुरेदते हो अमर, और वो जख्म जो अब नासूर बन गया है।"
"मैं कुछ समझा नहीं!"
"एक पति था जो छोड़ कर चला गया और एक भाई है जिसे जब तक पैसे देती रही साथ रहा और जब पैसे नहीं दिए तो..."
"लेकिन आप तो कहती थीं कि मेरा भाई ही मेरे लिए सबकुछ है, खैर छोड़े इन बातों को।
आप अभी कह रही थीं कि आपका पति छोड़ कर चला गया। आपका पति आपको छोड़ कर चला गया या आपने उसे घर से निकाल दिया था? आपने अपने उस पति को घर से निकाल दिया था जो आपसे बेपनाह प्यार करता था और वो भी केवल इसलिए कि आपके पति की नौकरी छूट गई थी।
आपने अपने पति को टॉर्चर करना शुरू किया, गाली देना शुरू कर दिया। आपने अपनी मां के कहने में आ कर कौनसा जुल्म नहीं किया अपने पति पर??
कई कई दिनों तक खाना न देना, आपस में पत्नी वाले शारीरिक संबंध न बनाना और फिर बेइज्जत करके घर से बाहर निकाल देना।
वैसे ठीक ही हुआ। आप न अपने पति को घर से निकालती और न आज आपका ठुकराया हुआ पति इतने बड़े हॉस्पिटल का मालिक बनता।" अपने एक एक शब्द पर जोर देता हुआ धीमी आवाज में कहता रहा अमर और सोनिया पत्थर के बुत की भांति सुनती रही।
"हां आपके पति का दोष यह था कि आपका पति झूठ बोलने लगा था, लेकिन कभी आपने सोचा कि आपके पति के दिल पर तब क्या गुजरती होगी जब आप यह कहती थी कि मुझे यह आदमी पसंद नहीं था, मेरी शादी जबर्दस्ती की गयी, मैं इस आदमी के साथ नहीं रहना चाहती...।"
"हां.. हां.. हां! मानती हूं अमर! मैंने आपके साथ बहुत ही अत्याचार किया, मैं आपको तुम कहने का अधिकार भी खो चुकी हूं। माफी मांगने के लिए भी मेरे पास शब्द नहीं हैं। जानते हो आपको खोने के बाद मैंने जाना कि मैंने सब कुछ खो दिया। यहां तक कि मैंने अपने आपको भी खो दिया।" कहते कहते आंसू आवाज में शामिल हो गए।
अमर अपनी चेयर से उठ कर सोनिया के पास आ गया।
"सोनिया..! क्या बची हुई जिंदगी मेरे साथ गुजारोगी??" कहते कहते अमर ने सोनिया के बाएं कंधे पर अपना दायां हाथ रख दिया।
सोनिया को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ।
"अमर......।"
"हां सोनिया...!"
"लेकिन अब जिंदगी बची ही कहाँ है अमर...??"
"चिंता न करो सोनिया! मैं तुम्हे इलाज के लिए अमेरिका लेकर जाऊंगा।"
"ओह अमर.....।" सोनिया की आंखें जैसे झरना बन गयीं, अमर ने सोनिया के सिर को अपनी बाहों में ले लिया।
समाप्त।