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बेपरवाह आगाज़


उन्होंने आगाज़ तो कर दी,

और हम बन गए हमराह।

उन्हें अंजाम से डर था,

और हम लुफ़्त उठा रहे थे,

सफर का, होके बेफिक्र ।

अंजाम से होके अंजान,

हसरतों को सजाना भी,

जेसे गुनाह सा हो गया।

खुशियों के इंतजार में ,

गम से याराना हो गया।

 

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