वक़्त से यही सिख पाया मै।
बस वक़्त से यही सिख पाया मै ।
जिदंगी में यूहीं कुछ सीखने चला था मै,
गिरकर चलना सीखने चला था मै ।
किसी को राह दिखाने की कोशिश में लगा था मै,
लेकिन वक़्त को मंजूर नहीं था।
शीशे में देखा जब खुदको ही मैंने, खुद से ही टकराया मै,
बस वक़्त से यही सिख पाया मै ।
हर किसी में एक गहराई है, उन गहराईयो छू आया मै ।
उन नम पलको के आंसू पोछ पाया मै।
न किसी से कभी हाथ नहीं फैलाया मै,
लेकिन क्या पता फिर भी मेरे पास कोई नहीं आया ।
बस वक़्त से यही सिख पाया मै ।
दरवाज़े और खिड़कियां खुली है, अभी भी दिलमे मेरे,
टकरा न जाना दीवारों से, आना जरा खोलकर आंखे।
अच्छे दिखावे की कोई जरूरत न थी और न होगी मुझे,
लेकिन तुम्हारी तन्हाई में साथ निभाना है मुझे ।
बस वक़्त से यही सिख पाया मै ।
औस की बूंद के लिए तड़पत रहे थे,
तेज बारिश बनके आया मै ।
अपनी राह पर बस चल पड़े सबको ठुकराया तुमने
कौसो दूर हो गयाथा मै, अरसा लगा खुदकी तलाश में मुझे ,
आज पा लिया खुद ही को खुद मै मैंने ।
बस वक़्त से यही सिख पाया मै ।