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ज़िंदगी, तू मुझे रोक लेना

ज़िंदगी, तू मुझे रोक लेना...

तेरा कत्ल करने पे उतर आऊँ तो,

ज़िंदगी, तू मुझे रोक लेना...

 

मैं पैदाइशी गुनहगार नहीं,

बस, हालातों की ज़रा सी मायूसी छाई है।

इन मायूस लम्हों को

सीने में कायम करने पे उतर आऊँ तो,

ज़िंदगी, तू मुझे रोक लेना...

 

तेरा सफ़र थोड़ा खुरदरा है,

यूँ ही मेरे पैरों में छाले नहीं उभर आये हैं।

महबूब सी इस सफ़र को

बीच राह अलविदा करने पे उतर आऊँ तो,

ज़िंदगी, तू मुझे रोक लेना...

 

तेरे मोहल्ले में आतंक फैला है,

तेरे मोहल्ले से कभी रुख़सत न होऊंगी मैं।

मौत को ज़िंदा रखने के वास्ते

तेरा कत्ल करने पे उतर आऊँ तो,

ज़िंदगी, तू मुझे रोक लेना...

ज़िंदगी, तू मुझे रोक लेना...

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© धर्मेश गांधी

(नवसारी)

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