आखिर ये जीवन' है क्या ?
इसे समझना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल भी ।
फर्क, सिर्फ नजरिये का है ।
एक नज़र में जिंदगी उगते सूरज के अस्त होने तक के सफर की तरह है, जिसमें सुबह की गुनगुनी धूप की मिठास के साथ ही, तपन भरी थकन के बोझ से ढलती शाम के साए में जैसे सिमटा हुआ तिमिर आकाश ।
पर, फिर...अँधेरे को चीरती हुई
सुनहरी सुबह के साथ फिर एक जिंदगी जन्म लेती है ,
फिर एक सफर ..अनवरत....
अपनी इन्हीं विचारधारा और भावनाओं के शब्दजाल को कागज पर उकेरने की हसरत में जब ,मेरी कलम ने कागज को स्पर्श किया तो भावनाओं का समंदर फूट पड़ा। जिसमें बहने लगा मासूम कलियों के मसले जाने का क्रोध, बिखरते रिश्तों का दर्द , जिस्मानी बाज़ारों में मर्यादा की सौदेबाज़ी ।
भीग गया शर्म से कागज उस वक़्त ,जब संस्करों के श्राद्ध में मानवता का भी हवन होने लगा ।
मेरे विचारों के आक्रोश ने मेरे लेखक मन को आप सबसे रूबरू होने का हौसला दिया ।
एक प्रयास मेरा.....
एक उम्मीद...आपके स्नेह और आशीष की
धन्यवाद