प्यार झुकता नहीं - भाग 30
टक्कर लगते ही गीता, छिटक कर दूर जा गिरी थी और गिरते ही बेहोश हो गई थी।
उसके बाद हाँ भीड़ इकट्ठी हो गई थी और उसी भीड़ में से किसी ने पुलिस और एम्बुलेंस को भी खबर कर दी थी।
साथ ही यह खबर एक परिचित के माध्यम से उपमा जी तक भी पहुंच गई थी
गीता के साथ हुई दुर्घटना की खबर जैसे ही उपमा जी तक पहुँची, वैसे ही तत्काल वे अपने पति वा बेटियों के साथ अस्पताल के लिए निकल पड़ीं।
अस्पताल पहुँचते ही मिस्टर अग्निहोत्री अपनी कार पार्किंग की ओर लेकर चले जाते हैं। और उपमा जी कार से उतरकर सीधे अस्पताल की ओर भागती चली जाती हैं।
अस्पताल के अंदर दाखिल होकर उपमा जी अपनी दोनों बेटियों के साथ रिसेप्शन में जाकर गीता के बारे में पूछती हैं।
रिसेप्सनिष्ट द्वारा बताए जानें पर कि गीता को ऑपरेशन के लिए ले जाया गया है, उपमा जी तेजी से उस ओर चली जाती है।
ऑपरेशन कक्ष को ढूँढते हुए उपमा वहाँ पहुँचकर नर्स से पूछती है कि गीता की हालत कैसी है।
नर्स ने उन्हें बताया कि अभी ऑपरेशन चालू है, ऑपरेशन हो जाने के बाद ही डॉक्टर कुछ बता सकेंगे।
तब उपमा ऑपरेशन कक्ष के बाहर रखे सोफे पर एक किनारे जाकर चुपचाप बैठ जाती हैं।
और गीता के ऑपरेशन सफल होने की प्रार्थना करने लगती है।
तब तक उपमा के पति उत्कर्ष भी अपनी गाड़ी पार्किंग में लगा कर आ गए थे। (आज उनका ड्राइवर घर पर नहीं था इसलिए उन्हें ही कार ड्राइव करना पड़ा था)।
किशोर को भी किसी ने फोन कर दिया था अतः वह भी अपनी छोटी बेटी रीना को साथ लेकर अस्पताल पहुँच चुका था।
दूसरी तरफ पंखुरी को भी किसी ने उसकी माँ के साथ हुई दुर्घटना के बारे में खबर कर दी थी अतः उसका वहाँ रो-रो कर बुरा हाल था।
और हॉस्टल से बिना पैरेंट्स की सहमति के छात्रों को कहीं भेजने की अनुमति नहीं थी।
इसलिए वह अकेले वहाँ बहुत परेशान हो रही थी।
जब उसकी प्राचार्या मैडम को यह खबर लगी तब वे अपने निजी जोखिम पर पंखुरी को अपने साथ लेकर पंखुरी के शहर चलने के लिए तैयार हो गई थी।
कॉलेज में बहुत से प्राध्यापक और जान-पहचान वालों ने उन्हें बहुत समझाया भी था कि मैडम आपके पद और गरिमा के प्रतिकूल है।
तब उन्होंने उन सबको जबाव दे दिया था कि,,, कोई भी पद-ओहदा इंसानियत से बड़ा नहीं होता है।
और गरिमा एवम पद भी मानवता से बड़ा नहीं होता।
यह लड़की मेरी निगरानी में है, वापस जाते हुए इसकी माँ मुझसे स्वयं इसका ध्यान रखने का आग्रह करके गई थी।
और मैंने उनको वचन दिया था कि मैं इसका ध्यान रखूंगी बशर्ते मेरी कुछ खाश हिदायतों पर अमल करेगी।
और आज मैं उसी वादे के स्वरूप व्यक्तिगत तौर पर इसके साथ जा रही हूँ।
आप सब लोग निश्चिंत रहिए कोई दिक्कत नहीं होगी।
ये भी मानकर चलिए कि यदि इसी जगह पर मेरा कोई निजी संबंधी होता तो क्या मैं वहाँ नहीं जाती?
पद और ओहदे वाले भी रिश्तेदारी तो निभाते ही हैं ना। हमने भी ये मान लिया हमारे ये कोई संबंधी ही हैं।
इतना कहकर, प्राचार्या मैडम अपने ड्राइवर को गाड़ी निकालने का कहकर पंखुरी को साथ लेकर कॉलेज से निकल पड़ीं थीं।
सार्वजनिक बस से चार-पाँच घंटे का रास्ता आज ढाई से तीन घंटे में ही पूरी हो गई थी।
अस्पताल पहुँचकर उन्होंने अपने ड्राइवर को गाड़ी पार्क करने के लिए कहा और वे स्वयं पंखुरी के साथ अस्पताल के अंदर प्रवेश कर गई।
जब तक प्राचार्या जी और पंखुरी अस्पताल पहुँची तब तक गीता का ऑपरेशन हो चुका था और उसको बाहर लाया जा रहा था।
पंखुरी गीता को देखते ही उसकी ओर दौड़ पड़ी और फफक कर रोने लगी थी।
उसको उपमा जी ने पकड़कर सम्हाला।
किशोर प्राचार्या मैडम को देखकर बहुत अभिभूत हुआ। हाथ जोड़कर कोटिशः धन्यवाद किया उनका, पंखुरी को यहाँ लाने के लिए।
वह इतना भावविभोर हो गया था कि यह भी भूल चुका था कि गीता को अभी-अभी ऑपरेशन कक्ष से बाहर लाया जा रहा है।
तभी प्राचार्या मैडम की नजर उपमा पर पड़ी और उपमा जी को देखकर उन्होंने कहा,,, "उपमा तुम यहाँ कैसे?"
उपमा जी ने भी कहा,,, "रेवती तुम हो? तुम यहाँ कैसे? मैं तो इसी कस्बे में ही रहती हूँ। गीता के साथ आई हूँ।"
प्राचार्या जी ने भी बताया,,, "वे पंखुरी को लेकर आई हैं। वे उसके कॉलेज की प्राचार्य हैं।
पंखुरी और रीना उन दोनों को देख रहीं थी कि प्राचार्या मैडम और उपमा आंटी तो दोनों एक दूसरे को अच्छे से जानती हैं।
तभी उपमा ने प्राचार्या मैडम से कहा,,, "रेवती चलो जरा डॉक्टर से पता करके आएँ कैसी हालत है गीता की!"
प्राचार्या जी ने भी कहा,,, "हाँ-हाँ चलो उपमा!"
फिर दोनों डॉक्टर के पास जाकर संपर्क करती हैं, और गीता के बारे में पूछती हैं।
डॉक्टर ने बताया,,, "ऑपरेशन तो सफल हो चुका है किंतु अभी जब तक मरीज को होश नहीं आ जाता, तब तक कुछ भी कह पाना मुश्किल है!
अभी हमें लगभग दो-चार दिन तक मरीज को गहन चिकित्सा कक्ष में ही रखना होगा।
ऑपरेशन के बाद गीता को गहन चिकित्सा कक्ष में शिफ्ट किया जा चुका था।
वह अभी बेहोशी के आलम में ही थी।
इधर उपमा और रेवती (प्राचार्या मैडम) डॉक्टर से मिलकर गीता के बारे में जानकारी ले रहीं थी।
तब डॉक्टर ने उन्हें बताया कि "ऑपरेशन सफल हो चुका है लेकिन मरीज की स्थिति के बारे में उसके होश में आने के बाद ही पता चल सकेगा।
आगामी चौबीस घंटों में होश में आने की संभावना है।"
उसके बाद उपमा और रेवती डॉक्टर के कक्ष से बाहर निकलकर, वहाँ पर आकर बैठ जाती हैं, जहाँ पर गीता के सभी करीबी बैठे हुए थे।
रीना और पंखुरी अभी भी रोए जा रहीं थी अतः रीना को रेवती ने सम्हाल रखा था और पंखुरी को उपमा ने अपने पास अपने बाँहों में समेटकर रखा था।
रो तो, उपमा की दोनों बेटियाँ भी रहीं थी, अपनी गीता आंटी के लिए।
लेकिन पहले रीना और पंखुरी को सम्हालना अत्यंत आवश्यक था क्योंकि गीता उनकी माँ है, जिसके लिए वे दोनों व्यथित हैं!
अभी सब लोग बैठे हुए गीता के विषय में यह चर्चा कर रहे थे कि आज अचानक से पता नहीं ये क्या हो गया!
गीता का आना-जाना तो रोज का ही रहता था। लेकिन इससे पहले ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ!
रेवती जी ने किशोर से पूछा,,, "किशोर जी गीता की तबियत ठीक नहीं थी क्या?"
"नहीं मैडम जी, गीता तो एकदम भली चंगी थी। कुछ भी नहीं हुआ था उसे। बस दो-तीन दिनों से कुछ उदास सी रहने लगी थी लेकिन पूछने पर भी उसने अपनी उदासी की वजह नहीं बताई थी!"
अभी सब लोग आपस में गीता के बारे में ही बातें कर रहे थे, तभी बाहर से एक रुआबदार बुजुर्ग एक शानदार सुनहरी फ्रेम या सोने के फ्रेम वाला चश्मा पहने हुए अस्पताल में दाखिल हुए।
उन्हें देखते ही उपमा उठकर खड़ी हो गई, और उनके पैर छूकर बोलती है,,, "नारायण काका आप यहाँ कैसे?"
रेवती भी उठकर उनके पैर छूती है और पूछती है,,, "नारायण काका आप?"
लेकिन किशोर उन्हें देखकर अपना मुँह दूसरी ओर फेर लेता है!
पंखुरी, रीना, प्रांजल और सेजल चारों आश्चर्य चकित होकर उन सबको देख रहीं थी। और माजरे को समझने का प्रयास कर रहीं थी।
लेकिन फिर भी उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
उपमा और रेवती को उन बुजुर्ग ने बताया कि "मैं ही गीता का वह अभागा बाप रहा हूँ, जो अपनी बेटी की भावनाओं को समझ नहीं पाया था और..." कहते हुए उन बुजुर्ग की आँखें भर आईं थी।
फिर अपने आप को सम्हालते हुए उन्होंने आगे कहा,,, "आज मेरी बेटी की जो हालत है उसका जिम्मेदार कहीं ना कहीं मैं ही हूँ!
यदि मैने उसे समझा होता तो आज वह दर-दर की ठोकरें नहीं खा रही होती और आज शायद ऐसी हालत भी ना होती!" ऐसा बोलकर वे बुजुर्ग पुनः फफक कर रो पड़े थे।
इतने में उपमा के पति उत्कर्ष जी आकर नारायण काका को सम्हालते हैं और कहते हैं,, "सब ठीक हो जाएगा काका, आप बिल्कुल भी मत घबराइए। देखिएगा गीता भी बहुत जल्दी ठीक हो जाएगी।"
फिर उन्हें पकड़कर उत्कर्ष जी, पास ही पड़े सोफे पर बैठाते हैं।
उपमा और रेवती भी आकर उनके आस-पास बैठ जाती हैं और उन बुजुर्ग (गीता के कथित पिता जी) को समझाती हैं। दोनों समवेत स्वर में कहती हैं,,, "काका धैर्य रखिए हम सब आपके साथ हैं!"
"हाँ उपमा बिटिया और रेवती बिटिया तुम दोनों जब गीता के साथ हो तो मुझे सचमुच गीता की चिंता करने की कोई जरूरत ही नहीं है!
लेकिन बिटिया तुम और रेवती दोनों साथ-साथ हो? गीता को भी दोनों जानती हो ये कैसा संयोग है?"
उपमा, रेवती की ओर सकुचा कर देखने लगती है, तब रेवती ने बात को सम्हाल कर आगे बताना चालू किया,,, "काका हम पहले गीता को नहीं जानते थे।
हमारी मुलाकात अभी कुछ दिन पहले ही हुई थी। जब गीता अपनी बेटी को हमारे कॉलेज में दाखिला दिलाने लेकर गई थी।
मैं उसकी बड़ी बिटिया के कॉलेज की प्राचार्या हूँ।
परंतु उपमा और गीता दोनों आस-पास ही रहती हैं, इसलिए वे दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह से जानती हैं।
वैसे यह बात भी मुझे आज ही पता चली है!
काका गीता से हमारा जुड़ाव पहली ही मुलाकात में हो गया था, इसलिए जैसे ही मुझे उसके साथ हुई दुर्घटना के बारे में खबर मिली, तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाई और मैं तत्काल उसकी बेटी को साथ लेकर मिलने चल पड़ी!"
किशोर अभी भी उन बुजुर्ग की तरफ पीठ किए हुए यथावत बैठा हुआ था!
क्रमशः ...............