रत्नभद्र स्वयं में एक आश्चर्य थे। आपको महानुवादक अथवा लोचारिन पोछे के नाम से याद किया जाता है, मूर्तिकला, भित्ति-चित्रकला, थङ्का (तत्कालीन पट- चित्रकला) के निर्माता, बौद्ध धर्म दर्शन, तन्त्र के ज्ञाता एवं स्थानीय लोकभाषा जंङ-जुङ, भोट व संस्कृत के मूधर्न्य विद्वान थे।
रत्नभद्र के बनावाए एक सौ आठ महाविहारों में से ताबो महाविहार ही एक ऐसा मठ है जो अपने पूर्ण गरिमा-मय प्राचीन रूप में विद्यमान है।