Meera Parihar - (17 December 2024)जानकारी युक्त आलेख 🙏 अंतिम पैराग्राफ बहुत बढ़िया। ग़ज़ल जब उर्दू से हिंदी भाषियों के आंगन में दस्तक देने लगी तो वह आजाद पंछी की तरह उड़ने लगी है। प्रेम के प्रतिबंधित वातावरण में अपनी मौजूदगी बनाए रखने के लिए दुनियादारी की जिम्मेदारी अपने ऊपर ओढ़ कर कभी सियासत के रंग में रंग जाती है तो कभी सामाजिक विद्रूपताओं पर रंगदारी देने से गुरेज करती है और चलती जाती है बेपरवाह अपनी आवाज उठाती हुई। बेबह्र ग़ज़ल कहलाती है।