"मैं पुकार हुँ अनंत की,पतझड़के ह्रदय में सोए वसन्त की"
Book Summary
भक्ति का अर्थ संसार से भागना नहीं, बल्कि संसार में रहते हुए भी ईश्वर को हर कर्म, हर भावना और हर व्यक्ति में अनुभव करना है।
यह हमारे मन, बुद्धि और कर्म का शुद्धिकरण करती है, जिससे जीवन स्वयं एक साधना बन जाता है।
सच्ची भक्ति वही है जो हमें कर्तव्य से नहीं हटाती, बल्कि हर कर्तव्य को ईश्वर की सेवा बना देती है।