बिलकुल अभी की कविता में पदार्पण करने वाले सतीश नूतन एक ऐसे बेचैन नागरिक है जो दोहरी नागरिकता से इनकार करते है | वे कविता में बड़े विषय के बड़े प्रश्न उठाने के विभ्रम से खुद को बचाते है और छोटे छोटे विषयो से ही बड़े सवाल खड़े करने की वास्तविकता का सामना करते है | उनकी स्थानीय संचेतना किसी हीनताबोध के बजाये आत्मविवेक के उस रूपक में घटित होती है जिसमे निहित पुरबिपन के लिए अलग से जड़ों की तलास नहीं करनी पड़ती | अपनी भाषा में अपने परिवेश की पुकार और उसका संवेदनशील प्रतिकार ही सतीश नूतन की मूल काव्य - प्रतिज्ञा है | उनकी अविधा में भी व्यंग की वो चुभन है जो शब्दार्थ तक सिमित नहीं रहती |
अष्टभुजा शुक्ल