गीत अधर पर सुधि सिरहाने ....
आज इतने वर्षों बाद श्रीकांत जी के गीतों को तरतीब देकर एक संग्रह की शक़्ल देते हुए मुझे जिस आनंद की अनुभूति हो रही है, उसे मैं शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त नहीं कर सकता, लेकिन इस गीत-संग्रह को लेकर मैं बहुत उत्साहित भी हूँ। कारण कि श्रीकांत जी एक बेहतरीन गीतकार थे, अपने गीतों से उन्होंने इसे प्रमाणित किया है। लेखन के शुरुआती दौर में उन्होंने ख़ूब गीत लिखे और धर्मयुग, नवभारत टाइम्स, कादम्बिनी, नवनीत, साप्ताहिक हिंदुस्तान-जैसी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होते रहे।
श्रीकांत जी के इन गीतों में जीवन अपने विविधवर्णी वैभव के साथ उपस्थित है। इनमें प्रकृति के सजीले चित्र, मध्यवर्गीय जीवन के राग-विराग, वंचितों के दुर्धर्ष संघर्ष और प्रेम की मनमोहक छवियाँ हमें इस तरह विभोर कर देती हैं कि हम भी कवि की रची इस अनूठी दुनिया के बाशिंदे हो जाते हैं। ये गीत कभी तो हमें भावनाओं की तरंगों पर सवार कर किसी कल्पनालोक की ओर ले जाते हैं, तो कभी समाज के तमस की ओर अपने रूपकों और तिर्यक इंगितों के ज़रिये सावधान-वाणी का उद्घोष करते है। श्रीकांत जी के इन गीतों में हमें जिजीविषा की वह अमंद दीप्ति दिखाई देती है, जिसे उन्होंने अनथक आत्मसंघर्ष से अर्जित किया है। उनके गीत हमें निरंतर सजग-सचेत करते रहते हैं। हमें यथार्थ की ज़मीन से जोड़े रहते हैं, यहाँ अश्रुविगलित वायवीयता के लिए कोई जगह नहीं है। वे पाठक की भावनाओं का शोषण नहीं करते, बल्कि उसे नये युगबोध के साथ जीवन-संघर्ष के लिए तैयार करते हैं।
उनके गीतों में छंद का कठोर अनुशासन नहीं है, लेकिन कवि ने लय को अद्भुत ढंग से साधा है। वे अपने गीतों में बड़े ही सुन्दर प्रतीकों, उपमाओं और रूपकों का प्रयोग कर उनकी ध्वन्यात्मक विशिष्टता को इस तरह अभिव्यक्त करते हैं कि गीतों की रागात्मकता में चार चाँद लग जाते हैं।
श्रीकांत जी एक कुशल संपादक, लेखक और कवि के रूप में साहित्य समाज में समादृत रहे हैं। इन गीतों को पढ़कर आज की पीढ़ी उनके गीतकार रुपी व्यक्तित्व को भी क़रीब से जान सकेगी। मुझे उम्मीद है हिंदी के गीतों से प्रेम करने वाले सुधि पाठकों को `सुधियों के बंजारे' गहरे स्पर्श कर सकेगा।
-- उत्पल बैनर्जी
4.7.2020, इंदौर