शोपिज़ेन के हॉरर कहानी संग्रह "उफ्फ-डर का मंजर" में सभी लेखक मित्रों का हार्दिक स्वागत है।
Book Summary
बचपन में हनुमान चालीसा कंठस्थ करते समय अक्सर यह ख्याल आता था, भूत पिशाच कैसे होते हैं। इनका आकार, प्रकार, स्वरूप कैसा होता होगा, जिसका वर्णन आदिकाल से आज तक हम सब सुनते आ रहे हैं।
सबसे पहला भय, डर इन्हीं भूत और पिशाच से आता है। इनके नाममात्र से ही शरीर में कंपकंपी सी छूटने लगती है। हम महावीर हनुमान जी का स्मरण करके भय, डर को दूर भगाते हैं।
भूत, प्रेत, पिशाच, चुड़ैल, जिन्न की कल्पना हर व्यक्ति अपने अनुभव अनुसार करता है। कुछ इनसे रूबरू होने का दावा भी करते हैं। हम माने या ना माने, कुछ तो अस्तित्व इनका भी है, जिनके नाममात्र से हमें भय लगता है और जिनका वर्णन हमारे पवित्र ग्रंथों में है।
भय, डर का हमारे मनुष्य जीवन से चोली दामन का साथ है। बचपन से बुढ़ापे तक हम अनेक प्रकार के भय, डर से रूबरू होते हैं। कभी परिस्थितियों के कारण भय उत्पन्न होता है। कभी भविष्य की चिंता के कारण हमें डर लगता है। विद्यार्थी जीवन में परीक्षा में असफलता का डर या फिर कम नम्बर आने का डर सबसे बड़ा डर होता है। यही डर कभी सपनों में आधी रात के समय आपके शरीर को पसीने से तरबतर कर जाता है। विद्यार्थी जीवन का यह डर शायद भूत पिशाच के साक्षात दर्शन होने से भी बड़ा डर है। कुछ इसी प्रकार का भय हमें युवा अवस्था और बड़ी उम्र में भी होता है, जब नौकरी, व्यापार, बच्चों की शिक्षा और उनकी परवरिश सम्बंधित असुरक्षा की भावना भी भय उत्पन्न करती है। रात को अजीबोगरीब सपने आते हैं। दिन में भय के कारण मन उचाट रहता है।