मैं एक लेखिका हूँ जो कहानी के विभिन्न रूप लिखती है।
Book Summary
इस संग्रह के अंतर्गत इन्होंने अठारह अध्यायों में विभिन्न विषयों पर अपने भाव व विचार प्रस्तुत किए हैं। दिव्या शर्मा ने नारी-विमर्श को लेकर कहा है कि प्रेमिका प्रेमी के हृदय में समा जाना चाहती है- स्त्री ढूंढती है प्रेमी के हृदय में गिरिराज, जिसके शिखर पर अंकित हो उसकी छवि (जीवनचक्र)। वह पुरुष को समुद्र और अपने आपको नदी के रूप में देखती है (सोखता)। स्त्री पुरुष को अपना तन-मन समर्पित करती है - स्त्री ने पुरुष को सौंप दिया/अपनी देह के भीतर बैठे उस मन को(अवगुंठन) वह पुरुष को ईश्वर तुल्य मानती है- मेरी देह में श्रद्धा भर हो। उसका ईश्वर एक पुरुष था (मृगतृष्णा)। वह डरती है कि उसके गर्भ से कहीं बेटी न हो जाए - कहीं कोई दे न जाए बदुआ ,बेटी पैदा होने की( आशंका)।
स्त्री के माथे की बिन्दी को लेकर कवयित्री कहती है कि उसके माथे की बिन्दी नए सम्बन्धों का सृजन करती है (केंद्रीकरण) ।