ये गजलें मेरी है मैंने इन्हें लिखा और महसूस किया यहीं कहीं आसपास समाज में, घर में, रिश्तों में। आत्मिक भाषा पहचानी सी और अपनी सी बात आप सभी को नज़र आए तो ग़ज़ल खरी बने।न कोई मुखौटा, न अजनबी शब्दों का लिबास पहनाया है। मै एक बेहद साधारण ग्रामीण परिवेश में पली पढी बढी हूँ। सामाजिक भावों को इस समय की काल परिस्थितियों से ही शब्दों को पिरोया है। भानविक उत्तेजना, पीडा, दबाव, अभाव और उनके उलझावों को व्यक्त किया है।ऐसा नहीं कि मैंने कोई बड़ा या महान काम किया है। बस भावो को एकत्रित करने का सलीका मात्र है मेरी किताब ।मनुष्य जीवन कष्ट पूर्ण है यह मेरा मानना है, यहाँ सुखी कोई नहीं दिखता। इसलिए किताब सिर्फ मेरे भावों से नहीं आप सबके भावों का समावेश होगी।बाकी आप सब पाठक जन पढकर ही निर्णय ले सकते है वही निर्णायक भूमिका होगी, जो आप सब सुभिजन की आलोचना होगी।मैं चाहती हूँ ऐसे पाठक जो मेरी गलतियों भी बताए ताकि में हमेशा सुधार करती रहूँ।