मैं अपने पाठकों से अनुरोध करती हूँ कि वे अपना प्रेम बनाये रखें। मेरी दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं पहली 'उसके बाद' और दूसरी 'मुझमें बेइंतिहा सा शामिल'। इस किताब का नाम 'राह रपटीली' है जिसमें सामाजिक जीवन की संगति-विसंगति पर आधारित कविताएं हैं। मेरी अधिकतर कविताएं समाज से सीख कर उसी से उठाए गये भावों पर ही लिखी हुई हैं। मैंने पढ़कर जो भी सीखा उसे लिखकर कविताओं के रूप में जो अथाह सागर भावों का उमड़-घुमड़ करता रहता है, उन जज्बातों को पाठकों के समग्र प्रस्तुत कर रही हूँ।उम्मीद है आप पढ़ेंगे जरूर और अपनी अभिव्यक्ति भी किसी न किसी माध्यम से व्यक्त करेंगे। इससे मुझे बेहद खुशी होगी।भाषा कोई भी हो सभी का सम्मान करती हूँ, मगर मेरे जीवन की लय हिन्दी ही है, इसमें लोक समन्वय के व्यवहार की मिठास है। मैंने गजलों में जरूर उर्दू शब्दों का भी इस्तेमाल किया है अर्थ सीख कर कि किस शब्द को कहां रख सकती हूँ।आज तो किसी का किसी के लिए न कोई व्यवहार ही रहा, न कुछ बर्ताव ही महत्वपूर्ण रहा। सब अच्छाई और बुराई समय के गराल में ही नष्ट हो जाती हैं