कभी-कभी ऐसा दौर आता है जब इंसान जिन्दगी को गुनगुना कर जीना रास आने लगता है। मेरी जिंदगी में ये दौर कवयित्री बनकर ही आया। तभी जाना कि जब मनुष्य कवि बन जाता है तो कष्टों को भी गुनगुनाकर शब्दों के रूप में बाहर लाने लगता है। मैं कोई मशहूर ग़ज़लकारा या कवयित्री तो नहीं, मगर कुछ पढ़ने का पढ़कर गढ़ने का शौक रहा। अब फुर्सत में हूँ तो मन के उद्गार प्रकट होने लगते हैं, तो शब्दों में ढ़ालकर अपने पाठकों तक भेजती हूँ। आशा करती हूँ आपको पसन्द आए। क्यों कि मेरा मन है, खुद को गुनगुनाकर, खुद को लिखकर खाली होने का और खुद को कहने का, आप सबके समक्ष आने का, तो लेखन से अच्छा कोई जरिया नहीं।