कुछ भूली यादें
कुछ बिखरे ख्वाब
यही है मेरी दास्तां....
Book Summary
स्त्री मन समाज के कैनवास पर हाशिए सा चांद है जिसे नैतिकता के नाम पर मर्यादा के खूंटे से कसकर बांधा जाता है|वहीं पुरुष मनोभावों को चांद के धुंधले हिस्से के हवाले कर दिया जाता है जो दिखता तो है ...... मालूम न होने के बराबर.......
बहती नदी में प्रतिबिंब उसने देखा
आधा काला - उजला आधा देखा