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आगे बढ़ने के लिए

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उमेश सत्य रिषद (एम.एम.पाठक)
उमेश सत्य रिषद (एम.एम.पाठक)
Poem
dr.sonil Sumit misra - (02 September 2020) 5
सटीक कटाक्ष है ये। आजकल वैसे भी इंसानों में इंसानियत बची नही है।

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विनोद पाराशर - (01 September 2020) 4
आगे बढ़ने के चक्कर में, मानव-मूल्य बहुत पीछे छूट गये हैं।हर रिश्ता जरूरत के हिसाब से तय होता है,जो बहुत ही दुःखद है। सुंदर कविता!💐

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इतिहास-संस्कृति और साहित्य बिषय में बिशेष रूचि---, - सिविल सेवा से संबंधित विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं में अध्यापन कार्य

Publish Date : 01 Sep 2020

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