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धर ले चाहे जो आकृति

धर ले चाहे जो आकृति


संजय निराला संजय निराला
Poem
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जलाता अपनी थाती ही बाती , दीपक बनता कब रे काती , हो निडर तुम चलना साथी , जीवन है ही क्षणभंगुर भाती ! धन्यवाद

Publish Date : 10 Jan 2021

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