Alka Pandey - (17 May 2022)काव्य गोष्ँठी ३१/५/२०२१ माँ का क़र्ज़ चुकाना है माँ का क़र्ज़ चुकाना है आज्ञा कारी बेटी बनना है ।। माँ का क़र्ज़ चुका नहीं सकें दुनियाँ में लेकर आई , हम कुछ कर न सकें ।। यह तन मन सब उसका दिया नव जीवन दिया ...हम क्या दे सकें ... माँ का कर्ज हम चूका न सके नौ माह कोंख में रख लहू से सींचा . प्रसव पीड़ा का दर्द सहा स्तन पान कराती डर डर के कुछ न खाती ... मेरे लाल को नुक़सान करेंगा सोच सोच , रख देती ,मनपंसद चीज़ न खाती .... माँ का क़र्ज़ चुकाना हैं पर क़र्ज़ हम चुका न सके ।। तन मन सब उसका दिया सदा दुआओं ने साथ दिया गर्भ में रखा , चलना सिखाया हर पल हमें नया सिखाया ।। जीवन हमारा उन्नत बनाया । हर गलती पर प्यार से समझाया ।। माँ का क़र्ज़ चुकाना है पर क़र्ज़ हम चुका न सके ।। हम बडे होते गये माँ बुढी होती रही । हम कामयाब होते रहे माँ तन्हा होती रही ।। हम माँ का दर्द समझ न सके हम कर्ज चुका न सके ... चलो हम कुछ क़र्ज़ कम करे माँ की तन्हाई बांट प्यार करे माँ के तन मन में सुखद एहसास जगाये । मुरझाये चेहरे पर खुशीयां लाये ।। माँ को गले लगा चिंता दूर करे । माँ मैं हूँ न .... कह कर चिंता सारी ले ले .. माँ का क़र्ज़ कुछ कम करे बुढ़ापे का सहारा बन हाथ आज हम थाम ले कमजोर नज़र की ज्योत बन पथ दिखा दे वो जो जो हमारे लिये करती रही ... अब हमारी बारी है माँ का क़र्ज़ चुकाना है आज्ञा कारी सेवा भावी बिटीया बनना हैं। डॉ अलका पाण्डेय मुम्बई