सृजक हूँ रचता रहता हूँ
महल शब्दों का गढ़ करके
ढहाता, ढहता रहता हूँ
Book Summary
कर्मण्येवाधिकारस्ते..
हमें सदैव कर्म करते रहना चाहिए। जीवन विश्राम का नाम नहीं, यह तो सतत् नदी का प्रवाह है। जिस प्रकार रुक जाने पर नदी सड़ जाती है, उसी प्रकार ठहर जाने पर जीवन कचरे का नाला हो जाता है, जो प्यार नहीं, सम्मान नहीं, केवल तिरस्कार पाता है, मात्र घृणा।