किरन सिहं - (23 August 2024)बिल्कुल सच कहा आपने अकरम भाई अपने यहाँ तक अपना खून तक दगा दे जाता है कोई किसी का यहाँ अपना नहीं होता है गैरों से प्रीत लगाकर उनसे आशा की जा सकती है पर अपनो से नही है
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अनामिका वाघ - (22 August 2024)सही कहा आपने..मैं फील कर पा रही हु आपके इमोशंस को..ये कड़वा सच है की अपने ही सबसे ज्यादा दर्द देते है..गैरों से प्रीत लगाना ही बेहतर है..वही हमे समझते है बिना किसी उम्मीद के..मेरे जीवन में जो भी अपने थे उन्होंने मुंह फेर लिया और मैने गैरोंको दोस्त बना लिया वही मेरे लिए सपोर्टिव है..खैर जो होता है अच्छे के लिए होता है...दुख सुख दोनो कुबूल..😌