सुन !
कब तक, आखिर कब तक ,
तू सवालों पर सवाल करती रहेगी,
एक बार नहीं लाखों बार कहा है तुझे,
मैं सिर्फ तुम्हारा हु।
मैं कोई आवारा नहीं, जज़्बातों से भरा हु,
तेरे इश्क की जंजीरों में जकड़ा परवाना हु।
तेरे किस्से मेरे हिस्से के ही है क्योंकि,
मैं सिर्फ तुम्हारा हु।
तेरा एक एक इशारा मुस्कुराहट वाला,
तेरी यह दूरी भी बहुत इतराती मुझ पर,
मैं अब भी जो बह रहा तुझमें क्योंकि,
मैं सिर्फ तुम्हारा हु।
तेरा इंतजार भी सौगातो से भरा,
जब भी नजर आता कोई तेरा नजराना,
आंखे रोकर गंवाई लिखवाती हमारे इश्क की,
क्योंकि अब भी,मैं सिर्फ तुम्हारा हु।
अब तुम्ही तो हो, मेरे इश्क का दरिया,
तू लहर और में किनारा बन बैठा हु,
तू पूछ कोई प्रश्न, तेरे हर प्रश्न का उतर में ही हु,
क्योंकि अब भी,मैं सिर्फ तुम्हारा हु।
भरत (राज)