तड़पता तुझे देखकर , आरजू मैने भी की,
कुछ पल ही सही, अपने सपने लुटा दु तुझपे।
और बढ़ गई होगी महक गुलाब की,
जब उसने भी छुआ होगा तेरे होठों को।
माना रक्त रंजीत नहीं होगा ,तेरा मेरा इश्क,
अब बीन रक्त के बह रहा वो किस्सा क्या है?
चल शिकायतों को फेक देते किसी कोने में,
एकबार फिर लुटा देते सपने अपने आप पर।
रूह में महक गुलाब वाली छोड़ जाते एक दूसरे में,
ना तेरी ना मेरी रूह में घुल जाए महक गुलाब की।
अकेले अकेले मुस्कुराता हु अक्सर तेरी शरारतों से,
कभी हकीकत बनकर दिल के मंदिर तक आया कर।
भरत (राज)