तुझे कहा गुरूर है अब अपने आप पर,
तू तो मसगुल है शिकायतों में,
अब कहा है वो तेरा शरारती स्वभाव,
जब से बैठी है पहन रखी है तूने खामोशी को।
सोचता हु क्या नहीं है तेरे पास,
फिर भी एक लंबी लिस्ट है शिकायतों की,
क्या कभी तेरी शिकायतें कम होगी,
दो पल ही सही मुस्कुराएगी। या फिर,
ऐसे ही शिकायतों का बाजार गर्म रहेगा।
कुछ तो बदलो अपने आप को यार,
जीना इसका नाम नहीं , हंसना जरूरी है,
गम तो चौराये दर चौराये बहा फैलाए खड़ा है,
बस मिलती नहीं मुस्कराने की वजह बाजारों में।
सुन रही है ना, तो कुछ तो समझ,
मत जाया कर यह जीवन है सुंदर,
खुल के जी ले जरा जरा तू क्योंकि,
मौत का बुलावा एक दिन तुझे भी आयेगा।
भरत (राज)