तेरे मिलने से लेकर
यादों तक के सफर में,
दूरियां ही दूरियां है मुझसे,
एक तेरा आना असंभव।
अब खव्वाबो के खयाल से,
तड़पती रूह के भय से,
मिलने बिछड़ने की रीत से,
मेरी तुझसे प्रीत असंभव है।
बादलों को बौछार से,
कोयल को राग से,
हंस को मोती से,
मुझको तुमसे प्रेम असंभव है।
सागर की गहराई में,
विरह की आग में,
जिस्म की भट्टी में,
मेरा तपना असंभव है।
रूठने से मानने तक,
सुबह से लेकर शाम तक,
बारिश से धूप तक,मेरा,
लोटकर आना असंभव है।
तेरे कागज और कलम से,
रूह में घुली उस स्याही से,
सूखे गुलाब के पत्तो पर,
इश्क तेरा लिखना असंभव है।
मौत के बाजार में,
कपन के मोल भाव में,
लकड़ियों पर तेरे जिस्म को,
आग देना असंभव है।
भरत (राज)