तेरे प्रेम में कृष्णा,
भक्ति की है तृष्णा।
भावो से भरा दरबार तेरा,
एक ख्याल तू रख दे मेरा।
सिर्फ दर्शन की आस तुझसे,
कहा कुछ मांगता इंशा तुझसे।
तुझे पाया झूमते हुऐ गरीबों में,
तेरी अमीरी का कायल जग सारा।
जो कोई आया तेरी चरण में,
सब फिकर चिंता से मुक्त वो हुआ।
तेरा नाम ही मेरे सांसों की माला,
जीत लु,जो फेक दु में भक्ति का भाला।
मेरे विरान पड़े इस देह में ,
तू हस्ताक्षर अपने कर जा "कृष्णा"।
भरत (राज)