शीर्षक :- पितर
जीवित पितृ के आशीष से,जीवन में बढ़ता संतोष
पितर की सेवा से बढ़े, सुख शांति का कोष,
जीवित रहते दुख देते हैं समय नही देते अनमोल
चंद समय प्रतिदिन देकर करो भावों का उद्घोष,
पितृ भक्ति के अस्तित्व का हो जिन्हे अहसास
मृत्यु बाद हजार खिलाओ बाद में करो अफसोस,
करनी ऐसी कर चलो घर में हो नित्य आलोक
कोई पूछता उनके हाल कहां सदा ही लगता दोष,
*वत्स* पुण्य कर्म से सुधरता अपना ही परलोक
बूढ़े बैठे इंतजार में इसका रहता नही किसी को होश।
*उषा श्रीवास वत्स*