शीर्षक :- पता बदल गया
चलो पथिक उन राहों पर
जहाँ अंगारो का हो जलना।
स्वयं को कसौटी पर कसना
उपहासी छलियों से ना छलना।।
राह सीधी तो सबने देखी
दुर्गम मंजर का क्या कहना।
लहू से लथपथ पाँव सन जाए
जख्म का दर्द स्वागत कर सहना।।
कभी शूल मिले कभी धूल मिले
अनजानी राहों पर ना थकना।
डगर-डगर कदम बढ़े हैं जब तो
पूरी शिद्दत जॉंची-परखी को अंकना।।
उपहास मिलें-उल्लास मिले
पथिक बदले पते पर मिलना।
जीवन गुजरा जिन सपनों में
सुगम कर नव सपन को खिलना।।
उषा श्रीवास *वत्स*