सुनसान गलियों में,
दर्द के सागर में ,
तन्हाइयों की हवा में,
बारिश की बूंदों में,
मै सिर्फ तुम्हारा हूं।
तरसते नयनों में,
दिलों के अरमानों में,
जिंदगी के सपनो में,
खोए हुऐ खयालों में
मै सिर्फ तुम्हारा हूं।
जीवन के पथ पर,
गुनाह की सजा पर,
रूह के रूठने पर,
अश्क के गिरने तक,
मै सिर्फ तुम्हारा हूं।
सुबह से शाम तक,
दिन और रात में,
तेरे हर इंतजार में,
खुशियों और गमों में,
मै सिर्फ तुम्हारा हूं।
तेरी आवाज के सुर में,
तेरी खामोशी की वजह में,
मिलने और बिछूड़ने में,
दर्द की हर तडपन में,
मै सिर्फ तुम्हारा हूं।
तेरी हर एक शंका में,
तेरे मन के विचारो में,
आंखो से गिरते आसुओं में,
धोखे और विश्वास में,
मै सिर्फ तुम्हारा हूं।
कल और आज के आज में,
जीवन के हरेक पल में,
सांसों की हरेक गर्माहट में,
तेरी हर मुस्कान में,
मै सिर्फ तुम्हारा हूं।
तेरे राह में,लक्ष्य में,
संघर्ष की उस सीमा तक,
तेरे कदमों के निशानी तक,
मेरा हर एक कदम तेरा है,
मै सिर्फ तुम्हारा हूं।
भरत (राज)