तेरे हाथो की लकीरों से होकर,
गुजरी मेरे जीवन की लकीरे है।
तेरी संवेदनाओ की कोख में,
मेरे गुजरे है, मैने नो माह।
मेरे पहली सांस से लेकर जन्म तक ,
जन्म से लेकर मोत तक तेरी ममता का मेला है।
जब मेरी जुबा ने किया शब्दों का सिंगार,
मेरी पहली आवाज में तेरा ही नाम "माँ" था।
जीवन में चोट बहुत खाई होगी मैने,
निशान मेरे शरीर पर, दर्द तेरी आत्मा में हुआ होगा।
ममता वाली दावा नहीं मिलती बाजार में,
वरना हर कोई दर्द से छुटकारा पा लेता जीवन में।
कितना कुछ सहा होगा मेरे सपनो की खातिर,
चल आज मैं भी कुछ सह लु "मां" तेरी खातिर।
भरत (राज)