शीर्षक :- क्या लिखूँ
यूँ कुछ लिखने बैठी तो सोचती हूँ क्या लिखूं?
क्या हसीन वादियों पर लिखूं या लव जिहादियों पर लिखूं,
या सामने बैठे किसी बेसहारे वृद्ध पर लिखूं
या जवान और शहादत के जिद पर लिखूं,
या उन्मादी हथकंडों की खेटी पर लिखूं
घर से विदा दहेज से मरी बेटी पर लिखूं,
या मौत के घाट उतारती औलाद पर लिखूं
या इस्मत के लुटारे जल्लाद पर लिखूं।
सोचती हूं लिख दूं किसी रिश्वतखोर पर,
फिर क्यों न लिखूं सरकारी चोर पर,
कसूरवार किसे मानूं? मासूम जनता
या रसूखदार जो पॉकेटमार के *बनता*
या नेता के अभिमान को लिखूं
या बढ़ाती बेरोजगारी के कमान को लिखूं।
ट्यूशन का बेलगाम शिकार लिखूँ
या शिक्षा का व्यापार लिखूं
अपंग,बेबस सिस्टम को लाचार लिखूं
या मंहगाई के नाम पर लूट-मार लिखूं
मंदिर-मस्जिद के लड़ाई में लगा औजार लिखूं
या महत्वहीन गुनहगारो का संसार लिखूं
*उषा श्रीवास वत्स*