शर्म से कहाँ जा मरूं

शर्म से कहाँ जा मरूं


Bahadur Patel Bahadur Patel
Poem
Kiran Kumar Pandey - (18 December 2024) 4
सही कहा आपने ! अपने कुकर्मों के बाद इंसान कहीं भी छुप नहीं सकता ! काव्य की दृष्टि से सामान्य परन्तु विषय वस्तु को देखते हुए बेहतरीन प्रयास ! मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं !

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Publish Date : 17 Dec 2024

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