शीर्षक :- देश का सिपाही
वह संतान देश का सिपाही है
क्यों पावन वर्दी पर दाग लगाते हो?
उठाते अनेकों सामर्थ्य के प्रश्न
अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाते हो।।
उसके रेगिस्तान की तपती धूप से रिश्ते
कड़कड़ाती ठंड के बर्कीले किस्से।
कमीशन खोरी नही करते कुटुम्ब के वास्ते
खुद्दारी में जीते है तुम्हारी दिये पीड़ा से खांसते ?
जोखिम उठाकर करता कहीं सर्जिकल स्ट्राईक
हर दांव खेलता करके सीमांत पर एयर स्ट्राईक।
कहते हो उनकी शहादत को हम नमन करते
फिकर तुम्हारी इतनी कि विधवा और बच्चे दो रोटी को मरते।।
अपने तांडव से शत्रुओं का संहार किया
छोड़ के सपने सारे घर-बार देश पर वार किया।
फर्ज को उसके अपने जेहन में हो घाटते
कर्ज चुकाने की आती बारी तो फाईलों को चाटते??
उषा श्रीवास *वत्स*