वक्त भोथरी तलवार सरीखा

वक्त भोथरी तलवार सरीखा


Satish Sardana Satish Sardana

Summary

वक्त भोथरी तलवार सरीखा वक़्त भोथरी तलवार सरीखा, सीने में चुभा है रिस रहा लहू भीतर ही भीतर, ज़ख्म टीसता है जो खो गया उसकी याद की तपन गहरी...More
Poem
આખિર બિલાખી કે. જે. સુવાગિયા - (24 April 2020) 5
आह! काफी असहाय परिस्थिति का वर्णन है! ये आधुनिक जीवन शैली की निरर्थकता का संत्रास है! रहा भी न जाय!... कहा भी न जाय!... और सहा भी न जाय!!... आखिरी दो लाइनों में 'हूं' की जगह 'है' होना चाहिए था।

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Publish Date : 23 Apr 2020

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