लाजवंती ने कुछ सोचकर उत्तर दिया- “क्या गाँव के लोग एक निर्धन ब्राह्मणी की कन्या का ब्याह नहीं कर सकते? और यह उनकी दया न होगी, धर्म होगा।”
हरो की आँखें भर आईं। वह इस समय निर्धन थी, परन्तु कभी उसने अच्छे दिन भी देखे थे। लाजवंती के प्रस्ताव से उसे अत्यंत दुःख हुआ, जैसे नया-नया भिखारी गालियाँ सुनकर पृथ्वी में गड़ जाता है। उसने धीरे से कहा- “बेटी! यह अपमान न देखा जायगा।”