इसके बाद पाकिस्तान के बदले शिमला की चर्चा थी डायरी में। ‘शिमला बहुत खूबसूरत जगह है। लेकिन शानो से ज्यादा नहीं मेरे दोस्त ने पठानकोट के एक अपने रिश्तेदार का पता दिया था। आखिर मैं यहाँ-वहाँ कितने दिन रह सकता था छुपकर? पठानकोट में शिमला के एक व्यापारी से दोस्ती हो गई और मैं इस गुमनाम शहर रामपुर-बुशहर में आ गया। शिमला से यहाँ तक पैदल लगभग 85 मील रास्ता तय करके आना पडा़, रास्ते में रुकते-रुकते। पहाड़ भी अजीब होते हैं, पत्थर के सीने और शानो की आँखों के आँसू लेकर बहते झरने। हे वाहे गुरु! जिस पर जान देता था, उसी को आँसुओं के समुन्दर में डुबो दिया। मेरे पाप की सज़ा देना मुझे, मेरे दशमेश पिता। मुझे कभी माफ न करना।’