डॉ. निधि अग्रवाल झांसी में चिकित्सक हैं। उनकी कहानी और कविताएँ विगत दो वर्षों से निरन्तर प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में स्थान पा रही हैं। अनेकों मंचों पर उनकी रचनाओं को स्थान मिला है।
डॉ. निधि अग्रवाल झांसी में चिकित्सक हैं। उनकी कहानी और कविताएँ विगत दो वर्षों से निरन्तर प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में स्थान पा रही हैं। अनेकों मंचों पर उनकी रचनाओं को स्थान मिला है।
Book Summary
श्रीपदा हाथ जोड़े खड़ी थी और नेत्रों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी।
“महर्षि आदित्यनाथ!”
आचार्य तीक्ष्णशृंगा का करुण स्वर प्रतिध्वनित हो रहा था, “आप के कारण आज मेरी संतान मुझ से विमुख हो रही है। धरती लोक पर आप भी संतान सुख से वंचित रहेंगे और जो विकार आपके मन मे आया वह कितना दंश देता है आप धरतीलोक पर प्रकट देखेंगे। स्मरण रहे”,
आचार्य श्राप दे क्रोध और लाचारी से काँप रहे थे।
“पिता श्री! आप गुरु होकर भी इतने निष्ठुर कैसे हो सकते हैं? आप भी देखिएगा मैं श्रीप्रदा आज प्रण करती हूँ कि आचार्य की दंड अवधि में मैं हर पल उनके साथ उनकी सेवा में उपस्थित रहूँगी। प्रणाम”