दूसरे दिन सरिता उससे मिलने तो नहीं आई, परन्तु उसने आकाशवाणी भवन से ही उसे फ़ोन किया, वह बहुत प्रसन्न लग रही थी। कहीं उसके स्वर में मलानता नहीं थी। जब तृष्णा ने उससे पूछा कि वह मिलने क्यों नहीं आई तो पीछे से उसने कन्हैया को कहते सुना, ‘‘बाप रे, कहीं चली मत जाना। वह सब समझ जाएगी। पक्की घाघ है।’’ और सरिता वहीं से वापस चली गई वही अनुत्तरित प्रश्न छोड़कर, आख़िर क्या चाहती है तृष्णा? तृष्णा ने सिर को झटका दिया, ‘सरिता जिस भी सीढ़ी का प्रयोग करे, उसे क्या? वह कौन होती है उसे कुछ कहने वाली या उसका भला-बुरा सोचने वाली?’