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देश की मिट्टी और तुम (कहानी)
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✍️जितेन्द्र शिवहरे
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"गरीब और अमीर को मिलाने की कोशिशें बहुत पहले से...More
परिचय- लेखक जितेन्द्र शिवहरे शिक्षक पद पर चोरल के सुदूर ग्रामीण अंचल गांव सुरतीपुरा के शासकीय विद्यालय में पदस्थ है। पन्द्रह वर्षों से अध्यापन कार्य में जुटे लेखक की साहित्य में आरंभ से ही रूचि है। काव्य मंचो पर पिछले दस वर्षों से सक्रीय है।
परिचय- लेखक जितेन्द्र शिवहरे शिक्षक पद पर चोरल के सुदूर ग्रामीण अंचल गांव सुरतीपुरा के शासकीय विद्यालय में पदस्थ है। पन्द्रह वर्षों से अध्यापन कार्य में जुटे लेखक की साहित्य में आरंभ से ही रूचि है। काव्य मंचो पर पिछले दस वर्षों से सक्रीय है।
Book Summary
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देश की मिट्टी और तुम (कहानी)
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✍️जितेन्द्र शिवहरे
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"गरीब और अमीर को मिलाने की कोशिशें बहुत पहले से होती आ रही है मगर नतीजों ने कभी ज्यादा खुश होने नहीं दिया।" अनुष्का बोली।
"कोशिशें जारी है, क्या ये कम खुशी की बात है?" अनुराग बोला।
"लेकिन हम दोनों के विषय में हंसी या खुश होने वाली कोई बात नज़र नहीं आती!" अनुष्का ने कहा।
"क्यों?" अनुराग ने पूंछा।
"आप मुझे देखीये! मैं हाईली एजुकेटेड, फोरेन रिटर्न और माॅर्डन ज़माने की लड़की हूं और आप एक मिडिल क्लास! उस पर किसान परिवार से; खेत, चारा और गोबर ही आपकी पहचान है, जबकी मेरा स्टेटस आपसे से कहीं ज्यादा ऊंचा है जिसके बारे में आप कभी सोच भी नहीं सकते।" अनुष्का ने आगे कहा।
"लेकिन आपके पिताजी ने यही सोचा है। उन्होंने खुद मुझे तुमसे शादी करने का प्रस्ताव दिया है।" अनुराग ने स्पष्ट किया।
"आई नो! डैडी और आप एक ही गांव से है लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की मैं आपसे शादी कर लूं?" अनुष्का चिढ़ते हुये बोली।
"अनुष्का! मैं आपसे सिर्फ इसलिए शादी नहीं करना चाहता कि आप विदेश में पली-बड़ी है और एब्राॅट में बिजनेस का प्लान कर रही है।" अनुराग ने समझाने की कोशिश की।
"तो फिर? आप मुझसे शादी क्यों करना चाहते है?" अनुष्का ने आगे पूंछा।
"दरअसल मैं आपके नाॅलेज और एक्सीरीयंस का एडवांटेज लेना हूं, अपने लिए नहीं! अपने गांव और समाज की बेहतरी के लिए।" अनुराग बोला।
"ओफ्फहो..! फिर वहीं गांव, खेत-खलिहान! देखीए! मैं पहले भी आपसे से कह चुकी हूं कि मैं खेती-किसानी करने वाले एक देहाती लड़के से कभी शादी नहीं करने वाली। कहां आप और कहाँ मैं?" अनुष्का ने अनुराग की तरफ पीठ करते हुये कहा।
"ओके! आप नाराज न हो! पहले मुझे मेरी बात पूरी करने दो। आखिर में आप जैसा कहेंगी वैसा ही होगा।" अनुराग बोला।
"ठीक है। कहिए आपको जो कहना है। और जरा जल्दी। मुझे शाम होने से पहले घर पहुंचना है।" अनुष्का बोली।
"मुझे पता है रात 8 बजे लंडन के लिए आपकी फ्लाइट है। बट यूं डोन्ट वरी। मैं आपका ज्यादा समय नहीं लुंगा।" अनुराग ने कहा।
"ठीक है। कहिए आपको क्या कहना है?" अनुष्का ने कहा।
"अनुष्का! आपके पिताजी की टोटल 11 शुगर मिलें है न!" अनुराग ने पूंछा।
"हां! सही कहा। मगर आप ये क्यों पूंछ रहे हो? क्या आपको पापा की किसी फैक्ट्री में जाॅब चाहिए? अगर हां तो आपका काम हो जायेगा! अब मैं जाऊं?" अनुष्का जल्दीबाजी में बोली।
"अरे नहीं। मुझे जाॅब नहीँ चाहिए।" अनुराग ने कहा।
अनुष्का हैरान थी।
"आपको पता है आपके पिताजी मिस्टर सुर्यकांत अग्रवाल अपनी शुरूआती जवानी के दिनों में मेरे दादाजी के यहाँ काम करते थे?" अनुराग ने पूंछा।
"व्हाट! ये आप क्या कह रहे है?" अनुष्का ने आश्चर्यचकित होकर पूंछा।
"हां। आपने ठीक सुना। उन दिनों मेरे दादाजी विश्वनाथ ठाकुर के यहाँ सैकड़ों लोग काम किया करते थे। आपके पिताजी भी उन्हीं में से एक थे। लेकिन आपके पिताजी की इच्छाएं और जुनून कुछ और ही करने का था। दादाजी यह भांप चूके थे। एक दिन उन्होंने सुर्यकांत अंकल को बुलाकार उनकी दिली इच्छा पूंछी। तब आपके पिताजी ने दादाजी को शुगर फैक्ट्री शुरू करने की अपनी योजना विस्तार से बताई। आपको यकीन नहीं होगा दादादी जी ने उस जमाने में आपके पिताजी को 54 लाख रूपये नरसिंगपुर में शुगर फैक्ट्री शुरू करने के लिए दिए थे।" अनुराग बोलते गया।
अनुष्का की आंखें अनुराग की बातें सुनकर फटी की फटी रही गयी।
"पता है! जब आपके पिताजी ने 54 लाख रूपये दादाजी की लौटाने की बात कही तब दादाजी ने आपके पिताजी से क्या कहा?" अनुराग ने पूंछा।
"क्या?" अनुष्का की रूचि जागने लगी थी।
"तब दादादी ने कहा कि -'मुझे 54 लाख रूपये नहीं चाहिए। अगर मुझे कुछ देना ही है तो मेरे गांव के 54 लोगों को अपनी शुगर फैक्ट्री में कुछ काम दे देना। गांव के 54 परिवार के घर का चूल्हा जलेगा तो मैं समझूंगा मुझे मेरे 54 लाख रूपये सूद समेत मिल गये।" अनुराग बोला।
अनुष्का चूप थी और अपने बर्ताव पर शर्मिन्दा भी।
"इतना ही नहीं, एक बार सरपंच दादाजी को राष्ट्रीय पुरुष्कार के लिए दिल्ली से बुलाया आया। तब दादादी ने पुरुष्कार लेने से मना कर दिया। उनका कहना था कि पंचायत पूरे गांव से मिलकर बनी है। गांव का कल्याण एक अकेले उन्होंने नहीं किया। इसमें ग्रामीणों का भी पूरा योगदान है। अगर सम्मान करना ही है तो पूरे 956 ग्रामीणों का भी सम्मान करें। और उन सभी के लिए ट्रेन की टीकिट भेजकर बाकी के इंतजाम भी करें।" अनुराग ने आगे बताया।
"फिर क्या हुआ? क्या गवर्मेंट ने दादाजी की बातें मानी?" अनुष्का ने पूंछा।
"नहीं। लेकिन सरकार ने दूसरा हल निकाला। उन्होंने जिला कलेक्टर के माध्यम से गांव में ही कार्यक्रम आयोजित कर पूरे गांव और दादाजी को सम्मानित किया।" अनुराग बोला।
"आपकी बातें सुनने में बहुत इन्ट्रेस्टींग है मगर मैं यहां कुछ कहना चाहूंगी।" अनुष्का बोली।
"बोलिए!" अनुराग बोला।
"आपकी बातें मुझे धीरे-धीरे समझ में आ रही है और मैं आपको बताना चाहती हूं कि यदि एक आदमी सेल्फ ग्रोथ करता है तो उसकी तरक्की से देश की भी तो तरक्की होती है न!" अनुष्का बोली।
"आप कहना क्या चाहती है?" अनुराग बोला।
"आप किक्रेट देखते है?" अनुष्का ने पूंछा।
"हां।" अनुराग ने जवाब दिया।
"वहां प्लेयर जो रन स्कोर करता है वह रन्स उस देश के खाते में भी जुड़ते है और उन्हीं रन्स की बदोलत देश हारता या जीतता है।" अनुष्का ने समझाया।
"आप हाॅकी देखती है।" अनुराग ने पूंछा।
"जी नहीं! मैं फुटबॉल देखती हूं और खेलती भी हूं।" अनुष्का बोली।
"तब आप मुझे बता सकती है कि क्या एक फुटबाॅल प्लेयर अकेले सारे गोल कर सकता है?" अनुराग ने पूंछा।
"नहीं! ये पाॅसिबल नहीं।" अनुष्का बोली।
"क्यों?" अनुराग ने पूंछा।
"क्या क्यों? एक फुटबाॅल के पीछे बीस-बाइस फुटबाॅलर लगे रहते है। बिना एक-दूसरे की मदद के या दूसरे प्लेयर को फुटबॉल पास किये बगैर गोल कैसे होगा?" अनुष्का ने बताया।
"एक्जेटली। इट मीन्स अगर सभी के द्वारा थोड़ी-थोड़ी कोशिश करने से एक फुटबॉल का मैच जीता जा सकता है तब देश को अग्रणी बनाने में हम सब मिलकर अपना छोटा-छोटा योगदान क्यों नहीं कर सकते?" अनुराग ने समझाने की कोशिश की।
"आप कहना चाहते है कि देश के बाहर जाकर अपनी काबिलियत के बल पर रूपये कमाकर देश और देश वासियों पर लुटा दें। भई वहां। ये भी आपने खूब कहीं।" अनुष्का बोली।
"नहीं आप समझी नहीं।" अनुराग बोला।
"तो समझाईये न!" अनुष्का बोली।
"थोड़ी देर के लिए मान लें कि आप मेरी बीवी है!" अनुराग बोला।
"आप मुझसे फ्लर्ट करने की कोशिश कर रहे है क्या?" अनुष्का बोली। हल्की मुस्कराहट उसके चेहरे पर तेर रही थी।
"नहीं। मगर जरा सोचिये। आप दुनियां भर की उन्नत टैक्नोलॉजी का अध्ययन कर यहां मुझे अपने देश में भेजेंगी और मैं उनका उपयोग अपने गांव और समाज कि उन्नति के लिए करूंगा।"
"इतना ही नहीं हम दोनों यहाँ के छुपे हुए टेलेंट को देश के साथ-साथ दुनियां भर में भेज सकते है जिससे हमारे अपने लोग बेजा प्रगति कर सकते है।" अनुराग बोला।
"लेकिन इन सबके लिए आपने मुझे ही क्यो चूना?" अनुष्का ने पूंछा।
"पता नहीं तुम्हें याद है कि नहीं। जब तुम सुरतीपुरा गांव में पढ़ती थी उस वक्त तुमने देश भक्ति पर बहुत ही प्यारा भाषण दिया था। इतनी कम उम्र की लड़की के अंदर अपनी मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम देखकर सभी की भांति मैं भी चकित हो गया था!" अनुराग बोला।
"अरे हां! मुझे याद है। लेकिन आप वहां कहाँ थे?" अनुष्का ने पूंछा।
"जब तुम्हारा भाषण खत्म हुआ था उस समय एक लड़के ने उठकर जोरदार तालियाँ बजाई थी। उसे देखकर बाकी सभी तालियाँ बजाने लगे थे! याद है?" अनुराग ने पूंछा।
"हां! सही है! क्या तुम वहीं मोटे से, थुथले से और तुतलाकर बोलने वाले अनु हो?" अनुष्का ने पूंछा।
"सही पहचाना। मैं वहीं अनु हूं। मैं तब ही से तुमसे प्रभावित था और शायद तुम्हें यकिन न हो। मैंने तब ही तय कर लिया था कि मैं तुम्हीं से शादी करूंगा।" अनुराग ने बताया।
"क्या? क्या ये सब सच है?" अनुष्का ने आश्चर्य से पूंछा।
"यकिन न हो तो अपने पिताजी से पूंछ लेना।" अनुराग बोला।
अनुष्का की आंखें झूक गयी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस परिस्थिति में वह क्या कहे क्या न कहें!
"मैंने दादाजी को अपनी दिल की बात तब ही बता दी थी। तब पता है दादाजी ने क्या कहा था?" अनुराग ने कहा।
"क्या कहा था दादाजी ने?" अनुष्का ने पूंछा।
"तब दादादी के कहा था अपने वतन से इतना प्रेम करना, जिसे देखकर अनुष्का कभी तुम्हें मना नहीं कर सके।" अनुराग बोला।
"उसके बाद तुम शहर चली गयी और फिर विदेश। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैंने अपने आपको पढ़ाई-लिखाई में झोंक दिया। हायर सेकण्ड्री के बाद मेडिकल काॅलेज में दाखिला लेकर एमबीबीएस की पढ़ाई की। उसके बाद डाॅक्टर बनकर अपने गांव में क्लीनिक खोला। साथ में एमएससी और एमटेक के बाद कानून की पढ़ाई करते हुये डिग्री ली। एमबीए और आईटीआई इंजीनियरिंग करने के बाद देश और विदेश से नौकरी के ऑफर आये लेकिन अपने देश और यहाँ के लोगों को छोड़कर मैं कभी नहीं गया।" अनुराग बोलते गया।
"मुझे उम्मीद ही नहीं विश्वास था कि एक दिन मैं तुम्हें अपने दिल की बात जरूर बता दूंगा। आज मैंने तुम्हें सबकुछ बता दिया। अब तुम्हारा जो भी फैसला होगा मुझे मंजूर है।" अनुराग कहते-कहते चूप हो गया।
अनुराग के चेहरे पर गजब का संतोष था। जिसे देखकर अनुष्का बैचैन हो उठी। उससे कहीं अधिक पढ़ा-लिखा और धनाढ्य होने के बाद भी अनुराग में लेश मात्र भी घमंड नही था। ऐसे युवक के प्रेम को अस्वीकार करने का निर्णय अनुष्का को अंततः बदलना पड़ा। देश छोड़कर जाने का सोचकर ही वह कांप उठी। देश प्रेम और समर्पित प्रेम की जो बेड़िया अनुराग ने अनुष्का के पैरों में बांधी थी उसे तोड़ने में वह असफल रही।
यकायक अनुष्का की आँखों में चमक आ गयी।
"अनुराग! आज अगर मैं आपसे मिलने नहीं आती तो शायद जीवन भर बहुत पछताती। अपने देश के प्रति जो प्रेम आपने मेरे अंदर जगाया है उसके लिए मैं आपका दिल से शुक्रिया अदा करती हूं और..!" अनुष्का बोलते-बोलते रुक गयी।
अनुराग अब भी मुस्कुरा रहा था। वह ध्यैर्य के साथ अनुष्का के मुख से कुछ ओर सुनने को आतुर था।
"और..! मुझे आपका प्रपोजल स्वीकार है। आपकी बीवी बनकर मुझे खुद पर बहुत गर्व होगा।" अनुष्का बोली।
अनुराग ने बाहें खोल दी। अनुष्का के कदम धीरे-धीरे अनुराग की तरफ बढ़े। अनुराग के हृदय पर अनुष्का का सिर आ पहूंचा। अनुराग ने बाहें समेटकर अनुष्का को स्वीकार कर लिया।
लेखक-
जितेन्द्र शिवहरे इंदौर
मो. 8770870151 (व्हाटसप)
मो. 7746842533 (काॅलिंग)