किरण कुमार पाण्डेय के के - (16 December 2024)इंसान की इसी स्थिति को 'किंकर्तव्यविमूढ़' कहा गया है ! खैर जाब के जबड़े में फंसे व्यक्ति की यही हालत होती है, लाख चीख पुकार कर ले, करना उसे वही करना पड़ता है जो बास चाहता है !
परिस्थितियों से विद्रोह के स्वर हर व्यक्ति के मन में जोर-शोर से उपजते हैं भले ही वो उनके तन और मन की शक्ति से परे ही क्यों ना हों। अब ये बात अलग है कि ऐसी अधिकांश विस्फोटक शहीदाना सोचे, विचार के स्तर पर ही दम तोड़ देती हैं। हास्य व्यंग्य से भरपूर इसी मनोभाव का कथा चित्रण है 'अजन्मा विद्रोही'।