और हवा भी विलाप करती रही, ज़्यादा से ज़्यादा तेज़ और ठण्डी होती हुई…मेरे कटकटाते दाँत फिर नृत्य करने लगे। वह भी ठण्ड से एकदम सिकुड़ गयी थी और मेरे इतने नज़दीक सरक आयी थी कि मैं अँधेरे में चमकती उसकी आँखें देख सकता था।
“तुम सभी बहुत बुरे होते हो, तुम मर्द लोग। मैं तुम सबको पैरों तले रौंद-कुचल देना चाहती हूँ, एकदम! तुम लोगों की बोटी-बोटी काट देना चाहती हूँ। तुममें से कोई यदि पड़ा मरता रहे…तो मैं उसके घिनौने चेहरे पर थूक दूँगी, थूक दूँगी और उसके लिए मुझे कभी अफ़सोस नहीं होगा! निकम्मे जानवर! तुम लोग रिरियाते हो और रिरियाते हो और गन्दे कुत्तों की तरह अपनी पूँछें हिलाते हो, लेकिन जब तुम्हें तुम्हारे ऊपर रहम करने वाली कोई मूर्ख औरत मिल जाती है, तो बस, सबकुछ ख़त्म। इसके पहले कि वह कुछ समझे, तुम उसे पैरों से रौंद डालते हो, कुचल डालते हो…गन्दे भड़वे!”