मनुष्य मनोवृति का घुमक्कड़ है। इस यायावरी में जब सौंदर्यबोध की दृष्टि से उत्साह और आतंरिक आनंद से प्रेरित होकर यात्रा करता है और उसकी खुल कर सहज-भाव से अभिव्यक्ति करता है तो वह एक साहित्य रच रहा होता है, यही लेखन-वर्णन ‘यात्रा-साहित्य’/‘यात्रा-वृत्तान्त’ कहलाता है। मानव प्रकृति व सौंदर्य का प्रेमी है। वह घुमक्कड़ स्वभाव का है, जहाँ भी जाता है वहाँ से साहित्य की भाँति कुछ-न-कुछ ग्रहण करता है, उसके द्वारा ग्रहण किये गये प्रेम, सौंदर्य, भाषा, स्मृति आदि को अपने अनुभवों को, अपने आनंद को और अपनी अनुभूति को शुद्ध मनोभावों से प्रकट करता है जो यात्रा-वृत्तान्त कहा जाता है। जाने कितने नाम हैं जो यात्रा-साहित्य लिखते रहे, पर अक्सर यात्रा की बात होने पर अलबरूनी, इब्नबतूता, अमीर खुसरो, हेनसांग, फ़ाहियान, मार्कोपोलो, सेल्यूकस निकेटर आदि। मुख्य रूप से भारतेंदु के युग को ही यात्रा साहित्य का आरंभ काल माना जा सकता है। यात्रा-साहित्य को संवेदना के साथ रुचिकर बनाया जाना बेहद ज़रुरी है। इसको लिखते हुए लेखक को संवेदनशील होकर भी निरपेक्ष होना चाहिए अन्यथा यात्रा के स्थान पर यात्री के प्रधान हो उठने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं और अनावश्यक वर्णन से यात्रा-साहित्य बोझिल हो सकता है। वर्णन में केवल मैंने ‘क्या खाया’, ‘कहाँ गया’, मात्र ना लिखते हुए थोड़ा अलग, रोचक और यात्रा से ग्रहण किये गए समष्टि के प्रेम, सौंदर्य, भाषा, स्मृति, कठिनाइयों और उनसे मिली सीख, संजोग आदि को अपने शुद्ध मनोभावों से प्रकट करना चाहिए। इंदौर लेखिका संघ के सदस्यों से हमने इस कोरोना-आपदा काल में सतत् लेखन करवाते हुए अवसाद के समय को सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया, ये यात्रा-संस्मरण भी उसी की देन हैं, उम्मीद है ये आप सबको पसंद आयेंगे। आपकी प्रतिक्रियाओं की अपेक्षा के साथ सादर-स्नेह सहित, आपको हम भारत-परिक्रमा पर ले चलते हैं, आइये चलते हैं शब्दों के सफ़रनामे पर...
डॉ स्वाति तिवारी