इस व्यंग्य संग्रह के लेखक श्री दीपक कर्पे और मैं एक ही बैंक यानी बैंक ऑफ महाराष्ट्र में साथ कार्य कर चुके हैं।बैंक की गृह पत्रिका में साथ ही लेखन भी किया है ।इसी नाते उन्होंने अपने इस प्रथम प्रकाशित होने वाले संग्रह की कुछ रचनायें समीक्षा के बतौर विचार व्यक्त करने के उद्देश्य से प्रेषित की थी।
आसपास के माहौल से छोटी छोटी बातों से उठाए गए उनके व्यंग्य दिल को छूते हैं। साथ ही हास्य का पुट होने के कारण गुदगुदाते भी हैं। देखिए उनकी एक व्यंग्य रचना "एक नई क्रांति :कुत्ता क्रांति" में व्यंग्यकार ने कुत्तों के माध्यम से हमारी संस्कृति पर हो रहे धीमे प्रहार पर भी ध्यान बखूबी खींचा है
"वी. आई. पी. का आगमन और मोहल्ले का काया कल्प" नामक रचना को पढ़ें। यह एक तंज भी है और आज की सच्चाई भी। हम अस्थायी व्यवस्थाओं मे इतना धन खर्च कर देते हैं कि उससे इन समस्याओं का स्थाई हल निकल सकता है। व्यंग्यकार की भाषा चुटीली है और सरल भी, जिससे पाठक का मन रमा रहता है।