“एकनाथ” ( मराठी मे “ एकोबा “ ) इस संत एकनाथ महाराज के जीवन- चरित्र पर आधारित चरित कथात्मक उपन्यास की लंबे समय की यात्रा अभूतपूर्व भी है और अनूठी भी |
वैसे तो उपन्यास का लेखन तेजी से संपूर्ण होने के बावजूद भी उसे प्रकाशित में लाने के लिये एक नही, दो नही, पूरे बारह साल प्रतिक्षा करनी पडी, देखा जाए तो इसकी मूल संहिता को प्रथम पढा गया ०९/१०/१९८८ को, और वह भी करवीर पीठ मे श्रीमद शंकराचार्य के मठ में , मान्यवर के उपस्थिती मे, जो अपने आप मे ही एक महायोग था |
कर्नाटक के हत्तरगी गाँव मे स्थित हरिमंदिर मठ के मठाधीश पूजनीय एकनाथदादा और आदरणीय सुमित्राभाभी तथा अन्य जिज्ञासु साहित्याकारो द्वारा इस रचना को आशीर्वाद और अभिप्राय, दोनो ही मिले | लेकिन इसके बाद नियति ने क्या खेल खेला, कि यह संहिता ही गायब हो गयी | आगे चलकर सालों तक उसे ढूँढते रहे, खोजते रहे, फिर भी वह नही मिली |
एक दिन अचानक एक भाषण कार्यक्रम के लिये मा.श्री. विजय कुवळेकर ,सूचना अधिकारी पुणे ,मेरे घर औरंगाबाद आए तो ‘एकनाथ ‘ की मूल संहिता के साथ | वह आनंद का पल आज भी याद आता है तो हृदय खुशी से नाच उठता है |
इसके अलावा इस उपन्यास के प्रकाशन का उत्तरदायित्व भी उन्होने ही स्विकार किया | पुणे के ‘प्राजक्त प्रकाशन ‘ के मान्यवर मा.श्री.जालिंदर चांदगुडे, इन्होने इसका प्रकाशन कार्य सम्हालने की क्षमता दिखाई, और उसे यथार्थ रूपसज्जा देकर प्रकाशित किया | इसलिये उनके आभार मानने के लिये मेरे शब्द कम पडते है | उनके सभी सहकारियों की भी मै आभारी हूँ |
‘एकनाथ ‘ की रचना काल से लेकर प्रकाशन के सुअवसर तक के मार्ग पर अनेक सुहृदों का सहकार्य और योगदान मिला , जिसे मै सद्गुरू कृपा ही मानती हूँ | उन्हीमें से है पैठण के नाथवंशीय पूज्य पांडुरंग बुवा और राजा बुवा गोसास्मी दंपति , जिन्होने नाथ वंश के कुल -परंपरा की अमूल्य जानकारी दी | आज राजा बुवा सदेह रूप से जीवित नही |लेकिन उनके शब्दरूप का अस्तित्व नाथकृपासे सदैव साथ में है | मै उन दोनों के ऋण में रहना चाहूँगी |
पूर्वकाल का ऋण भी शब्दो मे व्यक्त नही हो पाता | ‘नाथ जीवन-चरित्र ’ की ऐसी गहरी लगन लग गई है कि उस विषय पर कितना ही लिखा जाए, तो बार बार की सोच पर वह नित्य नूतन ही प्रतीत होता है |
आज तक उनके जीवन के कितने ही अधखुले कमलदल की पंखुडियों जैसे पन्ने हैं जिनके ताजा, प्रसन्न, सदाबहार, रूप का दर्शन चित्त को आकर्षित करता है ,इतना ही नही तो उस दर्शन से नया प्रकाश और नई दिशाएँ दिखाई देती है | यह सब मन को भाता है, हृद्य में बोया जाता है, और नाथ की कृपा से ही कभी-कभी शब्दो में साकार होता है |
“एकनाथ “ उपन्यास का यही वृतांत है |
आज संत एकनाथ महाराज के जीवन चरित्र पर आधारित यह चरित्रात्मक उपन्यास ,रसिक पाठकों के सामने रखते हुए अधिक समाधान है
पाठक इस उपन्यास का और कॅनडा निवासी श्रीमान श्यामसुंदर चंदावरकर ने किया हुआ अंग्रेजी अनुवाद का स्वागत ही करेंगे – यही विश्वास है | नाथ चरणो में यही प्रार्थना है |